जैसे-जैसे वक्त बदल रहा है लोग अपनी हेल्थ को लेकर कॉन्शियस हो रहे हैं. कुछ लोग फिटनेस के चलते शुगर का सेवन ही नहीं करते तो वहीं कुछ लोग ब्राउन शुगर का इस्तेमाल करते हैं. ब्राउन शुगर का इस्तेमाल वही लोग करते हैं जो फिटनेस फ्रीक होते हैं या जिन्हें शुगर से दिक्कत होती है.अब सवाल ये है कि आखिर वाइट और ब्राउन शुगर में अंतर क्या है. कुछ लोगों को कन्फ्यूजन होती है कि क्या वाइट शुगर को ही कलर करके ब्राउन किया जाता है या ब्राउन शुगर कोई अन्य पदार्थ से तैयार किए जाते हैं. यह सभी कंफ्यूजन दूर करेंगे हम इस आर्टिकल में.
कैसे बनता है ब्राउन शुगर
दरअसल ब्राउन शुगर और वाइट शुगर दोनों ही गन्ने से बनाई जाती है. इसके सोर्स में कोई भी अंतर नहीं होता. हां थोड़ा प्रोसेस अलग जरूर होता है.ब्राउन शुगर को बनाने का सबसे जरूरी इनग्रेडिएंट होता है, मोलासेस. यह एक ऐसा तत्व होता है जो गन्ने या शुगर बीट को रिफाइन करते समय बनता है. इस प्रोसेस में शक्कर अलग हो जाता है और मोलासेस अलग हो जाता है. सफेद शक्कर में जब मोलासेस मिलाया जाता है, तब उसे ब्राउन रंग मिलता है और इसकी थोड़ी न्यूट्रिटिव वैल्यू भी बढ़ जाती है. ब्राउन शुगर में मोलासेस की वजह से कुछ मात्रा में आयरन कैल्शियम पोटेशियम जिंक कॉपर फास्फोरस जैसे न्यूट्रिएंट्स ज्यादा हो जाते हैं.
क्या सच में ब्राउन शुगर में कम कैरोली होती है?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ब्राउन शुगर में कम कैलरी होती है. हालांकि यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर और अन्य यूनिवर्सिटी में जब इसको लेकर रिसर्च की गई तो पता चला कि ब्राउन शुगर और वाइट शुगर में एक जैसे ही कैलोरीज होती है. यह बहुत बड़ा मिथ कि ब्राउन शुगर में कम कैलरी होते हैं. इन दोनों के डाइजेस्ट होने का प्रोसेस भी एक तरह ही है.फर्क इतना है कि वाइट शुगर से ज्यादा ब्राउन शुगर में न्यूट्रिएंट्स होते है ब्राउन शुगर डायबिटीज के रोगियों के लिए सफेद चीनी की तुलना में एक बेहतर विकल्प हो सकता है लेकिन ये दावे के साथ भी नहीं कहा जा सकता इसलिए डायबिटीज के मरीज को बहुत संभलकर ब्राउन शुगर का सेवन करना चाहिए.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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