(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
चीनी कंपनी सिनोवाक की वैक्सीन गंभीर कोविड-19 के खिलाफ कितनी है असरदार? जानें
चीनी कंपनी सिनोवाक की वैक्सीन का 72 लाख इस्तेमाल करनेवालों में 0.011 फीसद को कोरोना संक्रमण होने पर आईसीयू में इलाज कराने की जरूरत पड़ी. ये मलेशिया सरकार की तरफ से आयोजित रिसर्च में किया गया है.
चीनी कंपनी सिनोवाक की बनाई कोविड-19 वैक्सीन गंभीर बीमारी के खिलाफ बेहद प्रभावी है. ये खुलासा मलेशिया में होनेवाले बड़े पैमाने पर रिसर्च से हुआ है. हालांकि, दूसरी कंपनियों ने भी जैसे फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ने बेहतर सुरक्षा दर दिखाई है. ताजा डेटा चीनी कंपनी के लिए हौसला बढ़ानेवाला है. उसकी वैक्सीन का असरदार होना सवालों के घेरे में रहा है. मलेशिया और थाईलैंड में सिनोवाक की वैक्सीन से टीकाकरण पूरा करानेवाले हेल्थ केयर वर्कर्स के बीच संक्रमण की खबर आई थी.
सिनोवाक की वैक्सीन गंभीर कोविड के खिलाफ बेहद प्रभावी
मलेशिया की सरकार की तरफ से आयोजित रिसर्च में 72 लाख लोगों के डेटा को देखा गया. उन्होंने सिनोवाक की वैक्सीन से टीकाकरण करवाया था. स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि 72 लाख में से मात्र 0.011 फीसद को कोविड-19 का संक्रमण होने पर आईसीयू में इलाज कराने की जरूरत पड़ी. उसके विपरीत दूसरी कंपनियों की वैक्सीन और सिनोवाक की वैक्सीन के असर को जांचा गया. 65 लाख ने फाइजर-बायोएनटेक और 7 लाख 44 हजार लोगों ने एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन का इस्तेमाल किया.
नतीजे से पता चला कि फाइजर-बायोएनटेक वाले ग्रुप में 0.002 फीसद को कोरोना से संक्रमित होने पर आईसीयू में इलाज के लिए भर्ती होना पड़ा, जबकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाने वालों को 0.001 फीसद में बीमारी होने पर इलाज के लिए आईसीयू जाना पड़ा. मलेशिया के इंस्टीट्यूट फोर क्लीनिकल रिसर्च ने नेशनल कोविड-19 टास्क फोर्स के साथ मिलकर रिसर्च किया था और उसके डायरेक्टर ने बताया कि वैक्सीन के ब्रांड के बावजूद टीकाकरण से आईसीयू में भर्ती होने का जोखिम 83 फीसद और मौत का जोखिम 88 फीसद तक कम हो जाता है.
एस्ट्राजेनेका और फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन से तुलना
उन्होंने बताया कि ब्रेकथ्रू संक्रमण की चपेट में आने पर आईसीयू में भर्ती होने की दर बेहद कम है. कुल मिलाकर टीकाकरण पूरा करानेवालों के बीच ये दर 0.0066 फीसद थी. इसी तरह, पूरे टीकाकरण से मौत की दर भी 0.01 फीसद थी और उनमें ज्यादातर की उम्र 60 वर्ष से ऊपर थी या पहले से किसी बीमारी के शिकार थे. शोधकर्ताओं ने कहा कि तीनों वैक्सीन इस्तेमाल करनेवालों की जनसांख्यिकी में अंतर थे और उसी की वजह से प्रभाव के नतीजे भी अलग रहे.
एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन इस्तेमाल करनेवाले दरमियानी उम्र के लोग थे जबकि फाइजर और साइनोवाक की वैक्सीन से बेहद संवेदनशील आबादी ने टीकाकरण करवाया. रिसर्च 1 अप्रैल से शुरू होकर 5 महीनों तक जारी रही, जिसमें कुल 45 लाख टीकाकरण पूरा करनेवाले लोगों को शामिल किया गया था और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवानेवालों की तादाद बहुत कम थी. साइनोवाक की वैक्सीन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, पाकिस्तान और ब्राजील समेत कई देशों में किया जा रहा है और कंपनी सितंबर की शुरुआत तक देश विदेश एक अरब 80 करोड़ डोज भेज चुकी है.
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