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Nutrition Alert: प्रीमैच्योर शिशु की देखभाल है बेहद चुनौती, जानिए कैसे पा सकते हैं पार

जन्म के समय से पोषण के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. डॉक्टर का कहना है कि 75 फीसद मामलों में संक्रमण जैसे डायरिया और न्यूमोनिया से शिशुओं की जिंदगी को खतरा होता है.

जिंदगी की शुरुआत से पोषण के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन विकास, वृद्धि और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि शिशु को एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग अगले छह महीनों से लेकर दो साल तक कराया जाए. ये प्रीमैच्योर शिशुओं या प्रेगनेंसी के 37 सप्ताह पूरा होने से पहले जन्म लेनेवालों के लिए और भी जरूरी है. डॉक्टर विकरम रेड्डी बताते हैं कि 75 फीसद मामलों में संक्रमण जैसे डायरिया और न्यूमोनिया से मासूमों की जिंदगी को खतरा होता है.

इसलिए, इंसानी दूध की शक्ल में पोषण को सुनिश्चित कराना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि बच्चे के विकास और वृद्धि में बेहद मददगार होता है. डॉक्टर गीतिका गंगवानी के मुताबिक, 100 फीसद ब्रेस्ट मिल्क के तौर पर  डाइट उपलब्ध कराना शिशु की जिंदगी और दिमाग समेत दूसरे अंगों के विकास के लिए बहुत अहम हो जाता है.

प्रीमैच्योर शिशुओं की कैसे करें देखभाल?

डॉक्टर रेड्डी का कहना है इंसानी दूध एंटीबॉडी मुहैया कराता है और आसानी से पच जाता है. उसमें महत्वपूर्ण अंगों का समर्थन करने और शिशु के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व होते हैं. उसके अलावा ये बीमारियों से लड़ने और दूसरी प्रीमैच्योर से जुड़ी दिक्कतों की रोकथाम के लिए प्राकृतिक इम्यूनिटी भी उपलब्ध कराता है. अगर बच्चा मां का दूध पीने में सक्षम नहीं है, तो आप अपना मिल्क एक्सप्रेस कर संग्रहित कर सकती हैं और कीटाणु रहित छोटे चम्मच से उसे पिला सकती हैं. अगर आप कामकाजी महिला हैं और देर तक आपको अपने बच्चे से दूर रहना पड़ता है, तो आपको अपना मिल्क उचित तापमान पर डॉक्टर के बताए अनुसार स्टोर करना चाहिए ताकि आपकी गैर मौजूदगी में भी उसे पिलाया जा सके.

अगर आपको ब्रेस्टफीडिंग कराने में दुश्वारी आ रही है या अपने बच्चे के लिए पर्याप्त दूध एक्सप्रेस नहीं कर पा रही हैं, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ बच्चे को देने के लिए पाश्चराइज किया हुआ ब्रेस्ट मिल्क की सिफारिश करते हैं. पाश्चराइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें गर्मी का इस्तेमाल रोगजनक सूक्ष्मजीव को मारने के लिए किया जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि उससे पोषण, इम्यून गुण, या गुड बैक्टीरिया पर प्रभाव नहीं पड़ता जो दूध में मौजूद हो सकता है.

पाश्चराइजेशन के बाद दूध की क्वालिटी की सख्ती से जांच की जाती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि बच्चे के उपयुक्त है या नहीं. डॉक्टर रेड्डी की सलाह है कि गाय या भैंस का दूध नहीं दिया जाए. ज्यादातर बच्चों का फॉर्मूला गाय के दूध से हासिल किया जाता है और बच्चे के नाजुक अंगों जैसे पेट, आंत, किडनी पर भारी पड़ सकते हैं. 

पानी या दूसरा तरल गर्मी में भी न दें- शिशुओं को पानी या कोई दूसरा तरल पदार्थ की जरूरत नहीं होती. मां का दूध उसकी सभी जरूरतों को पूरा करता है जो जिंदगी, विकास और वृद्धि के लिए जरूरी है. पहले शुरुआती छह महीनों के दौरान दूसरे फूड्स को परिचय कराने से परहेज करें. चूंकि प्रीमैच्योर शिशु पूरी तरह गर्भाशय में विकसित नहीं होते हैं, इसलिए पेचीदगी होने का जोखिम बहुत ज्यादा होता है.

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