नई दिल्लीः इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, आजकल नकली दवाओं का कारोबार अपनी पकड़ बना चुका है. ऐसे में जरूरी है कि इस पर कानून बनें तभी जेनरिक दवाएं लिखना कारगर होगा.
आईएमए के महासचिव डॉ. आर.एन. टंडन ने कहा, "अगर डॉक्टरों को जेनरिक दवाएं लिखनी हैं तो दवाओं की जांच और गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले कानूनों को मजबूत बनाना होगा. आईएमए दवा का केवल जेनरिक नाम लिखने के हक में है लेकिन डॉक्टर को कंपनी का नाम भी लिखना होता है जिसकी दवा मरीज को लेनी होती है. यह भी खुले तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए."
उन्होंने कहा कि लोगों तक सस्ती दवाएं पहुंचाने के मकसद में सरकार का पूरा साथ देने के लिए आईएमए तैयार है.
टंडन ने कहा कि सीजीएचएस, पीएसयू और आईआरडीए को रिम्बर्समेंट के लिए एनएलइएम दवाएं लाजमी बनाने का आदेश देना चाहिए और किसी विशेष मामले में कारण बताने पर ही इसमें छूट मिलनी चाहिए. एनएलइएम में शामिल होने की वजह से अब स्टेंट भी सस्ते हो गए हैं. अन्य उपकरण भी एनएलइएम में शामिल किए जाने चाहिए.
टंडन ने कहा कि आम तौर पर जेनरिक दवा का नाम लिखने का अर्थ यह समझ लिया जाता है कि दवा का जेनरिक नाम लिखना है. हर जेनरिक दवा का एक ब्रांड नाम भी होता है और एक जेनरिक नाम भी होता है, लेकिन हर जेनरिक नाम वाली दवा जेनरिक दवा भी हो, यह जरूरी नहीं होता. पैरासिटामोल का पेटेंट 2007 में खत्म हो चुका है जिसके बाद इसके अनेक जेनरिक रूप विभिन्न ब्रांड से बनाए और बेचे जा रहे हैं. अगर पैरासिटामोल ही लिख दिया जाए तो यह दवा विक्रेता पर निर्भर होता है कि वह कौन से ब्रांड की दवा दे, वह सबसे महंगी दवा भी दे सकता है और सबसे सस्ती भी.
उन्होंने कहा कि इसका सबसे आसान हल है सबसे सस्ते दाम वाली पैरासिटामोल का ब्रांड लिखना. ब्रांडेड और ब्रांडेड जेनरिक दवाएं भारत में एक ही दवा निर्माता कंपनी द्वारा बनाई जाती हैं, उनके दाम बहुत सोच समझ कर रखे जाते हैं. उदाहरण के लिए अगर ब्रांडेड दवा में मुनाफा 25 से 30 प्रतिशत है तो ब्रांडेड जेनरिक में यह 201 से 1016 प्रतिशत होता था.
आईएमए का मानना है कि ऐसा करने के लिए जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता नियंत्रित करने वाले विभाग को रसायन एवं पेट्रोलियम मंत्रायल की बजाए स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन लाना चाहिए. हर प्रदेश में उच्च गुणवत्ता वाली प्रयोगशालाएं स्थापित करनी होंगी.
उन्होंने कहा कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि अगर पर्ची पर जन औषधि नहीं लिखा होगा तो किसी को जन औषधि दवा नहीं मिलेगी. इसलिए जन औषधि भी एक ब्रांड है. सभी एनएलईएम दवाएं वन विंडो फार्मेसी पर उपलब्ध होनी चाहिए. दवा विक्रेताओं द्वारा एनएलईएम दवाएं न रखना कानूनन अपराध होना चाहिए. इसका हल यही है कि दवा का जेनरिक नाम लिखें, एनएलईएम में से चुने, जन औषधि या स्टैंडर्ड कंपनी का नाम लिखें.
नकली दवाओं पर लगाम के लिए सख्त कानून बने: आईएमए
एजेंसी
Updated at:
22 Apr 2017 08:38 AM (IST)
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