नई दिल्ली: देश में हर साल पैदा होने वाले 27,000 से अधिक शिशुओं में बहरेपन की शिकायत रहती है, जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है. लेकिन इनकी पहचान अगर आरंभ में हो जाए तो इलाज आसान हो जाता है. ईएनटी स्पेशलिस्ट के मुताबिक, बहरेपन से निजात पाने के लिए जन-जागरूकता की आवश्यकता है.


क्या कहते हैं एक्सपर्ट-
गंगाराम अस्पताल के कॉक्लीयर इंप्लांट कंसल्टेंट डॉ. शलभ शर्मा का कहना है कि युनिवर्सल न्यूबोर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यूएनएसएस) से नवजात शिशुओं में श्रवण शक्ति की पहचान आसानी से की जा सकती है. बस इसके लिए माता-पिता को जागरूक करने की जरूरत है.


अस्पताल के ईएनटी विभाग के सीनियर डॉ. ए.के. लाहिड़ी ने कहा कि माता-पिता और परिजनों को किसी श्रवण शक्ति कम होने से संबंधित तकलीफों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कोक्लियर इंप्लांट एक व्यक्ति को खामोशी से आवाज की दुनिया में ले जाता है. यह जीवन को बदलने वाला क्षण है. कई विकसित देशों में हर नवजात शिशु के लिए हियरिंग स्क्रीनिंग कराई जाती है. भारत को भी यूनिवर्सल न्यू बॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने पर विचार करना चाहिए.


क्या कहते हैं आंकड़े-
दुनियाभर में लगभग 36 करोड़ लोग सुन नहीं सकते. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 50 लाख से ज्यादा आबादी बहरेपन की समस्या से पीड़ित है. विश्व की करीब 5 फीसदी आबादी सुनने से लाचार है. देश में सुनने से लाचार नौजवानों की बड़ी आबादी है जिससे उनकी शारीरिक और आर्थिक सेहत पर भी असर पड़ता है.


डॉ. आशा अग्रवाल ने कहा कि समय से रोग की पहचान और बहरेपन का इलाज जरूरी है. अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में मिली उचित सहायता से बच्चा अपनी कमी से उबरकर तेजी से बोलना और बातचीत करना सीख सकता है. इससे उसे समाज की मुख्य धारा का अंग बनने का भी मौका मिलता है.


ये एक्सपर्ट के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.