एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस (DGHS) ने भारत के फार्मासिस्ट एसोसिएशन को पत्र लिखा है. इस लेटर के जरिए केमिस्ट से यह अपील की गई है कि आम नागरिक को एंटीबायोटिक दवा देने से पहले डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन जरूर देंखे. और प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर ही दवा दें. इस आदेशों को जल्द से जल्द प्रभाव में लाया जाए. इस लिस्ट में एंटी माइक्रोबायल्स में एंटी सेप्टिक, एंटी बायोटिक,एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी पेरासाइटिक दवाएं शामिल हैं.  


डॉक्टर अगर मरीज को लो एंटीमाइक्रोबायल्स दवा लेने की सलाह दे रहे हैं तो इसका कारण भी जरूर बताएं.


2019 में लगभग 13 लाख लोगों की मौतें हुईं


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस (AMR) पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के हिसाब से खतरनाक है. एक डेटा के मुताबिक साल 2019 में लगभग 13 लाख लोगों की मौत बैक्टीरियल AMR के कारण हुआ है. इसके अलावा 50 लाख मौतें ड्रग रेजिस्टेंट इंफेक्शन के कारण हुई है. 20वीं सदी की शुरुआत में किसी भी बीमारी से ठीक होने में एक महीने का वक्त लगता था. लेकिन अब एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स (एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल दवाएं) का इस्तेमाल इस तरीके से होने लगा कि अब इन बीमारियों का इलाज तुरंत हो जाता है. 


एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार-बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो उसकी इम्युनिटी कमजोर होने लगती है. साथ ही इसे ठीक करने में काफी समय लगता है. इसे एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) कहते हैं. 


आजकल तुरंत ठीक होने के लिए लोग ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करते हैं


भारत में दवाओं से जुड़े कानून के अंतर्गत सभी तरह के एंटीबायोटिक्स को H और H1 के कैटेगरी में रखा गया है. इन दवाओं को डॉक्टरों के पर्चे के बिना नहीं बेचा जा सकता है. आजकल लोग जल्दी ठीक होने के लिए ज्यादा से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. 


एंटीबायोटिक के ओवरयूज से बैक्टीरिया बन रहे सुपरबग


एंटीबायोटिक्स के बहुत ज्यादा इस्तेमाल करने से बैक्टीरिया सुपरबग बन रहे हैं. जिसके कारण मामूली सी बीमारी भी ठीक होने में वक्त लगता है. इसका साफ अर्थ है कि एक मामूली सी बीमारी भी अब खुद से जल्दी ठीक नहीं होती है.  WHO के मुताबिक इस कारण न्यूमोनिया, टीबी, ब्लड पॉइजनिंग और गोनोरिया जैसी बीमारियों का इलाज काफी ज्यादा कठिन हो रहा है और लोगों की मौत हो जा रही है. ICMR के मुताबिक यही कारण है कि निमोनिया, सेप्टीसीमिया में दी जाने वाली दवाएं कार्बेपनेम पर रोक लगा दी गई है क्योंकि यह बैक्टीरिया को ठीक करने में बेअसर हो रहे हैं. 


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