रोस्टेड मटन हो या चिकन, फिश हर कोई बड़े ही चाव से खाता है. कई बार तो लोग यह भी सोचकर खाते हैं कि ऑयली या तले हुए चिकन और मटन से अच्छा है रोस्टेड चिकन. इसे हेल्थ के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद माना जाता है क्योंकि न इसमें ऑयल की मात्रा होती है और न ही मसाला का झनझट होता है. स्मोक्ड या बारबेक्यूइंग नॉनवेज पुराने जमाने से मीट को सुरक्षित रखने के लिए यूज किया जाने वाले तरीका है. वहीं न्यूट्रीशनिस्ट अंजलि मुखर्जी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि रोस्टेड मिट हेल्थ के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है.
अंजलि के इस पोस्ट पर व्यूवर ने कई सारे सवाल किए तो उसका जवाब देते हुए लिखती हैं कि स्मोक्ड फ्राइंग, ग्रिलिंग, बारबेक्यूइंग, बेकिंग और उच्च तापमान पर भूनने से मांस काफी ज्यादा मात्रा में हेट्रोसाइक्लिक एमाइन (एचसीए) रिलीज करते हैं. जबकि स्टूइंग, पोचिंग, बॉइलिंग, स्टीमिंग या सॉटिंग और धीमी आंच पर पकाए जाने वाले मिट हेल्थ के लिए उतने नुकसानदायक नहीं होते हैं. स्मोक्ड मीट सेहत के लिए सही नहीं होता है. कई रिसर्च में साफ किया गया है कि स्मोक्ड मीट खाने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तक का होने का खतरा होता है.
रोस्टेड मीट कैंसर को देता है न्योता
न्यूट्रीशनिस्ट अंजलि मुखर्जी के मुताबिक रोस्टेड चिकन दिल की मांसपेशियों और डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है. सिर्फ इतना ही नहीं आप अगर काफी ज्यादा इस तरह के नॉनवेज खाते हैं तो वक्त से पहले बूढ़े लगने लगेंगे. खासकर औरतें जिन्हें स्मोक्ड चिकेन, बारबेक्यूड, या ग्रील्ड मांस खाने की काफी ज्यादा लत है तो उन महिलाओं में पोस्टमेनोपॉज़ल में ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. उन महिलाओं में तो यह मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं. जो ज्यादा सब्जी और फल नहीं खाती हैं. ज्यादा नॉन वेज खाने से कैंसर और दिल की बीमारी का खतरा बढ़ा रहता है.
अंजलि मुखर्जी की बातों में सहमति जताते हुए न्यूट्रीशनिस्ट स्पेशलिस्ट इश्ती सलूजा ने बताया कि जब भी मीट को तेज आंच पर पकाया जाता है तो दो तरह के कैमिकल निकलते हैं.जैसे- एचसीए और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच). और सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि यह डीएनए पर काफी गंभीर असर करती है.
मांस, पोल्ट्री या सीफूड को जब उच्च तापमान पर पकाया जाता है तो होते हैं ये नुकसान
इष्टी आगे कहती हैं कि सीए ऐसे कैमिकल होते हैं जो मांस, पोल्ट्री या सीफूड के मांस पर तब बनते हैं जब उन्हें उच्च तापमान पर पकाया जाता है. इस तरह के उच्च तापमान आपके द्वारा पकाए जाने वाले मांस की मांसपेशियों में अमीनो एसिड, शर्करा और क्रिएटिन के बीच प्रतिक्रिया पैदा करते हैं. यह आगे चलकर डीएनए को इस तरह से बदल देता है जिससे कैंसर के विभिन्न रूपों के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है. आप मांस को जितनी देर तक ग्रिल करेंगे, उतने अधिक एचसीए और पीएएच बनते हैं.
एचसीए और पीएएच डीएनए को पहुंचाते हैं नुकसान
इश्ती ने बताया कि 'एचसीए और पीएएच डीएनए को नुकसान पहुंचाने में बेहद कारगर हैं. जब वे बायोएक्टिवेशन नाम एक प्रक्रिया के जरिए शरीर में कई तरह के एंजाइमों द्वारा मेटाबोलाइज किए जाते हैं. स्टडी में पाया गया कि इन एंजाइमों की गतिविधि लोगों के बीच भिन्न हो सकती है, इसलिए कैंसर विकसित होने का जोखिम निश्चित नहीं है और प्रत्येक शरीर में भिन्न हो सकता है.
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