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क्या सचमुच होल व्हीट ब्रेड होती है हेल्दी?
नई दिल्लीः अक्सर आपने सुना होगा लोग व्हाइट ब्रेड को अनहेल्दी और होल व्हीट ब्रेड और ब्राउन ब्रेड को हेल्दी मानते हैं. लेकिन एक हालिया रिसर्च में व्हा़इट ब्रेड को भी ब्राउन या होल व्हीट ब्रेड की तरह हेल्दी माना गया है.
क्या कहती है रिसर्च- ये रिसर्च चौंकाने वाली है और अब तक हुई रिसर्च के विपरीत है. हैरान करने वाली इस रिसर्च में कहा गया है कि व्हाइट ब्रेड में भी उतने ही न्यूट्रिशंस होते हैं जितनी अन्य ब्रेड में. रिसर्च में ब्रेड के हेल्दी गट बैक्टीरिया के लेवल को भी मापा गया. हेल्थ इफेक्ट के मामले में एक सप्ताह में दोनों ब्रेड में से किसी में भी कोई अलग इफेक्ट नहीं दिखा. क्या कहते हैं आलोचक- वहीं आलोचकों का मानना है कि बेशक, इस रिसर्च के मुताबिक, शॉर्ट टर्म पीरियड में बहाल व्हीट ब्रेड और व्हाइट ब्रेड के हेल्थ बेनिफिट्स एक जैसे हो लेकिन ये रिसर्च इस बात की सलाह नहीं देती कि लोगों को हाई फाइबर ब्रेड का सेवन कम करना चाहिए. वैसे भी हाई फाइबर युक्त होल व्हीट ब्रेड लाइफटाइम के लिए ओवरऑल हेल्थ के लिए बेहतर हो सकती है. कैसे की गई रिसर्च- इजराइल के विजमैन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने 20 लोगों के ग्रुप को शामिल किया. जिसमें एक सप्ताह तक इन्हें व्हाइट ब्रेड खिलाई गई. इसके दो सप्ताह बाद तक कोई ब्रेड नहीं खिलाई. फिर इसके एक सप्ताह बाद हाले व्हीट ब्रेड खिलाई गई. रिसर्च के नतीजे- रिसर्च के नतीजों में बताया गया कि दोनों ही टाइप्स की ब्रेड से प्रतिभागियों को 25 फीसदी तक कैलोरी मिली. रिसर्च से पहले और बाद में प्रतिभागियों की हेल्थ मॉनिटर की गई. रिसर्च में प्रतिभागियों के ग्लूकोज लेवल से लेकर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फैट और कॉलेस्ट्रॉल लेवल को भी जांचा गया. साथ ही किडनी और लिवर की कंडीशन भी देखी गई. रिसर्च में दोनों ब्रेड के खाने से किसी तरह का कोई फर्क नहीं देखा गया. क्या कहते हैं एक्सपर्ट- शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया गया कि कुछ प्रतिभागियों का ब्लड शुगर लेवल व्हाइट ब्रेड खाने से बेहतर हो गया है. जबकि ब्राउन ब्रेड और होल ग्रेन ब्रेड खाने वाले प्रतिभागियों का ब्लड शुगर लेवल एक जैसा था. सेल मेटाबॉलिज्म में पब्लिश हुई रिसर्च के मुताबिक, शोधकर्ताओं का ये भी कंसर्न था कि व्हाइट ब्रेड से हाई फाइबर उतनी मात्रा में नहीं मिलता जितना होल ग्रेन ब्रेड और ब्राउन ब्रेड से मिलता है. हाई फाइबर खाने से कैंसर, कार्डियोवस्कुलर डिजीज़ और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम हो जाता है. नोट: ये रिसर्च के दावे हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.Check out below Health Tools-
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अनिल चमड़ियावरिष्ठ पत्रकार
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