जैकी श्रॉफ थैलेसीमिक्स इंडिया के ब्रांड एंबेसडर हैं. थैलेसीमिया खून से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है. थैलैसीमिया मरीज को प्रेग्नेंसी से पहले इसका टेस्ट करवाना बेहद जरूरी होता है कि वह इसके लिए सही है या नहीं. जैकी श्राफ ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि शादी से पहले ही लोगों को थैलेसीमिया माइनर की जांच करवानी चाहिए.
थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन बनना ही बंद हो जाता है. यह खून से जुड़ी बीमारी है, जो जेनेटिक कारणों से होती है. थैलेसीमिया (Thalassemia) माता-पिता से बच्चों में पहुंचती है. कम जानकारी की वजह से यह बीमारी काफी खतरनाक हो सकती है. आइए जानते हैं आखिर यह बीमारी है क्या, इससे किसे सबसे ज्यादा खतरा है और बच्चों को लेकर कितना सावधान रहना चाहिए...
थैलेसीमिया क्या है
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल जबलपुर के पीडियाट्रिशियन डॉक्टर नंदन शर्मा के मुताबिक, बच्चों में थैलेसीमिया की बीमारी जेनेटिक होती है. अगर पेरेंट्स को ये बीमारी है तो बच्चे में 25% संभावना थैलेसीमिया होने की बढ़ जाती है. इसका बचाव तभी किया जा सकता है जब शादी के वक्त मेल और फीमेल का ब्लड टेस्ट किया जाए. ऐसी स्थिति में होने वाले बच्चों को इस बीमारी से बचाया जा सकता है. डॉ शर्मा के मुताबिक हर साल 10 हजार से ज्यादा बच्चे थैलेसीमिया के सबसे ज्यादा गंभीर रूप के साथ जन्म लेते हैं. यह बीमारी उनके शरीर में हीमोग्लोबिन और रेड ब्लड सेल्स बनने की क्षमता को प्रभावित करती है. यही कारण है कि थैलेसीमिया से पीड़ित को समय-समय पर खून चढ़ाना पड़ता है.
कितनी खतरनाक है थैलेसीमिया की बीमारी
डॉक्टर बताते हैं कि चूंकि थैलेसीमिया में बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में बार-बार खून चढ़ाने से मरीज के शरीर में ज्यादा आयरन वाले तत्व जमा हो जाते हैं. जिसकी वजह से लिवर, हार्ट और फेफड़ों को गंभीर नुकसान हो सकता है. इसके अलावा हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी होने का खतरा भी बढ़ जाता है.
थैलेसीमिया के लक्षण क्या हैं
1. उम्र बढ़ने के साथ-साथ थैलेसीमिया के अलग-अलग लक्षणों का नजर आना.
2. कुछ सामान्य लक्षणों में एनीमिया के साथ बच्चे की जीभ और नाखूनों का पीला पड़ना
3. बच्चे का ग्रोथ रूक जाना, उम्र से काफी छोटे और कमजोर दिखाई पड़ना
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4. वजन का अचानक से गिरना
5. सांस लेने में तकलीफ होना
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क्या थैलेसीमिया का परमानेंट इलाज है
हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि थैलेसीमिया को जड़ से खत्म किया जा सकता है. इस बीमारी की गंभीरता, लक्षणों और मरीजों को हो रही समस्या के आधार पर डॉक्टर इसका इलाज करते हैं. मरीज के शरीर में हीमोग्लोबिन का लेवल बनाए रखने के लिए थोड़े-थोड़े समय पर खून चढ़ाकर, एक्स्ट्रा आयरन को बॉडी से बाहर निकाला जाता है. इसके अलावा फोलिक एसिड जैसे सप्लीमेंट्स लेने की सलाह भी डॉक्टर देते हैं. जरूरत पड़ने पर थैलेसीमिया का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए भी किया जाता है.
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