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नॉनवेज में आर्टिफिशियल कलर पर कर्नाटक सरकार ने लगाया बैन, क्या इससे कैंसर हो सकता है?
कर्नाटक सरकार कुछ फूड आइटम में आर्टिफिशियल कलर मिलाने के लेकर बड़ा फैसला लिया है. आइए विस्तार से जानें आर्टिफिशियल कलर इंसान के स्वास्थ्य के लिए कितना नुकसानदायक हैं?
![नॉनवेज में आर्टिफिशियल कलर पर कर्नाटक सरकार ने लगाया बैन, क्या इससे कैंसर हो सकता है? Karnataka banned the use of artificial colors in food items like kabab gobhi manchurian नॉनवेज में आर्टिफिशियल कलर पर कर्नाटक सरकार ने लगाया बैन, क्या इससे कैंसर हो सकता है?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/06/25/64199003202902ff568650c5b39a67401719294834441593_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
कर्नाटक सरकार ने कबाब, चिकन, मछली और कुछ वेजिटेरियन आइटम जिसमें आर्टिफिशियल कलर का इस्तेमाल होता है उस पर बैन लगा दिया है. हाल ही में हुए लैब टेस्टिंग में पता चला है कि इन फूड आइटम में जो फूड कलर का इस्तेमाल किया जाता है उससे सनसेट येलो और कारमोइसिन की मात्रा काफी ज्यादा पाई गई है. जोकि इंसान की स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
आर्टिफिशियल कलर के कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का बढ़ता है खतरा
सरकार ने साफतौर पर कहा कि जो भी रेस्तरां, स्ट्रीट फूड का स्टॉल या किसी भी तरह फूड आइटम कि ब्रिकी वाली जगह इस कानून का उल्लंघन करेगी उन्हें जेल और भारी जुर्माना के साथ-साथ गंभीर दंड भुगतना पड़ सकता है. कर्नाटक सरकार का कहना है कि कुछ फूड आइटम में इस्तेमाल किए जाने वाले फूड आइटम सेहत के लिए काफी ज्यादा हानिकारक है. इसके कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक कर्नाटक के 'स्टेट फूड एंड सैफ्टी क़्वालिटी विभाग' ने 39 अलग-अलग कबाब डिशेज की जांच की थी. इसमें से 7 सैंपल में पाया गया कि आर्टिफिशियल कलर का काफी ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. खासकर सनसेट येलो और कारमोइसिन ये दोनों कलर हेल्थ के लिए काफी ज्यादा खतरनाक है.
2006 और 2011 फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट
2006 और 2011 फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट के तहत बताया गया कि इन फूड कलर्स का इस्तेमाल सेहत के लिए ठीक नहीं है. साथ ही सरकार के तरफ से जारी आदेश में कहा गया कि जो इन नियमों का उल्लंघन करेंगे उन्हें 7 या आजीवन कारावास भी हो सकता है. कम से कम 10 लाख जुर्माना के साथ. जो ऐसा करेंगे उन दुकानों की लाइसेंस भी रद्द हो सकती है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने बताया कि पैकेज्ड फूड आइटम में कम मात्रा में‘टार्ट्राजीन’ का इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन रेस्तरां या किसी होटल, ढाबा में इसका इतना ज्यादा इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकार हो सकता है.
फूड आइटम में आर्फिशियल कलर मिलाए जाते हैं
कॉटन कैंडी, स्वीट कैंडी, अनाज, आलू के चिप्स, सॉस, आइसक्रीम और कई तरह के पेय पदार्थों में आर्फिशियल कलर मिलाए जाते हैं. फिलहाल खाद्य पदार्थों में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाले कृत्रिम रंग हैं रेड नंबर 5 (एरिथ्रोसिन), रेड नंबर 40 (एल्यूरा रेड), येलो नंबर 5 (टार्ट्राज़िन), येलो नंबर 6 (सनसेट येलो), ब्लू नंबर 1 (ब्रिलियंट ब्लू) और ब्लू नंबर 2 (इंडिगो कारमाइन) है.
पोटेशियल कैंसर
खाने में फूड कलर मिलाने से कैंसर का खतरा कम होता है इसके सबूत मिले हैं. लेकिन ब्लू 2 वाले कलर ज्यादा खाने से ब्रेन ट्यूमर औक कैंसर का खतरा बढ़ता है. साथ ही साथ थायरॉइ़ड ट्यूमर का जोखिम भी बढ़ता है.
कुछ फूड कलर जैसे नीला 1, लाल 40, पीला 6 खाने से शरीर में एलर्जी ट्रिगर हो सकती है.पीला 5 फूड कलर से एस्पिरिन एलर्जी और अस्थमा की बीमारी हो सकती है. रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि जिन लोगों को पुरानी पित्ती और सूजन की दिक्कत है उन्हें 52 प्रतिशत चांस रहता है कि उनके कलर मिलाए हुए फूड खाने से एलर्जी हो सकती है.
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