देश में हर साल 2 लाख से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक मुश्किल से 15-20 हजार किडनी ही पूरे साल में ट्रांसप्लांट हो पाते हैं. बाकी के 1 लाख 80 हजार मरीज या तो डायलिसिस पर होते हैं या फिर शॉर्ट कट अपनाया जाता है. शॉट कट के चक्कर में कुछ लोग गलत रास्ते में चलने लगते हैं. गलत रास्ते से अर्थ है किडनी का अवैध तरीके से ट्रांसप्लांट किया जा रहा है. आजकल किडनी रैकेट सिस्टम के अंदर आराम से फल फूल रहा है. 


किडनी रैकेट कैसे करता है काम


टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सफदरजंग हॉस्पिटल में किडनी ट्रांसप्लांट के सर्जन डॉ. अनूप कुमार किडनी रैकेट के बारे में बात करते हुए बताया कि इसके कारण डिमांड और सप्लाई काफी ज्यादा होती है. साल में 2 लाख की जरूरत में से 15-20 हजार लोगों की ही ट्रांसप्लांट हो पाती है.


इसका सक्सेस रेट काफी ज्यादा है. लिवर, हार्ट, लंग्स ट्रांसप्लांट की तुलना में काफी कम है. डॉक्टर विकास जैन का कहना है कि दो किडनी होने के कारण डोनर भी डोनेट करने के लिए तैयार हो जाते हैं.किडनी सर्जरी के लिए बड़ा  इंफ्रास्ट्रक्चर और एक्सपटीज की जरूरत पड़ती है. इसकी सर्जरी छोटे सेंटर पर भी की जाती है. यह छोटे शहरों के प्रोटोकॉल भी नहीं होता है. इसलिए किडनी रैकेट ज्यादातर छोटे शहरों में चलते हैं. 


किडनी रैकेट ऐसे देता है घटना को अंजाम


डॉक्टर्स कहते हैं कि किडनी रैकेट का सारा खेल डॉक्यूमेंट्स के जरिए होता है. चूंकि कमेटी को रेसिपिएंट और डोनर के बीच रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं होता है. जो डॉक्यूमेंट्स रखे जाते हैं उसके आधार पर फाइल अप्रूव करते हैं. डॉक्यूमेंट्स भी फर्जी और नकली होते हैं. अगर किसी व्यक्ति को पति-पत्नी दिखाना है तो डॉक्यूमेंट्स के आधार पर दिखा सकते हैं.


फर्जी तरीके से आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट तैयार किए जाते हैं. अगर पति को किडनी चाहिए तो पत्नी डोनर बन जाती है. उसी आधार पर पती के ब्लड ग्रुप के आधार पर पत्नी के ब्लड गुप तैयार किए जाते हैं. दरअसल, पूरा खेल तब होता है जब असल डोनर कोई और होता है और रिपोर्ट में मरीज की पत्नी को डोनर बना दिया जाता है. ऐसे में अप्रूवल कमेटी के पास कोई खास तरीका नहीं होता है कि इन चीजों को वेरिफाई करे. 


किडनी रैकेट विदेशों में ज्यादा अच्छे से होता है. अगर मरीज भारत का है तो उनके बच्चे से पूछताछ की जा सकती है. लेकिन विदेशी मरीज के साथ लैंग्वेज की समस्या होती है. इसके अलावा डॉक्युमेंट्स वेरीफाई में काफी ज्यादा दिक्कत होती है. इसलिए विदेशी मरीजों के साथ फर्जीवाड़ा ज्यादा हो सकता है. किडनी ट्रांसप्लांच का खर्च 7 से 8 लाख का होता है. विदेशी मरीजों को 20 से 25 परसेंट ज्यादा देना होता है.


कमेटी की मंजूरी के बाद सर्जरी


ट्रांसप्लांट में जब डोनर लिविंग कमेटी के अप्रूवल के बिना सर्जरी नहीं होती है. इस कमेटी में जो डॉक्टर इलाज कर रहे होते हैं उन्हें नहीं रखा जाता है. 


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