जानिए क्या है Retinopathy ऑफ प्री मैच्योर की बीमारी जिससे नवजात को होता है नेत्रहीनता का खतरा, क्या है इसका बचाव
आरओपी नाम की बीमारी का खतरा समय से पहले जन्मे बच्चों के साथ होता है.अगर शिशु का जन्म 28 में हफ्ते हो गया है तो आंख की रोशनी के जाने का खतरा बढ़ जाता है.
Retinopathy of prematurity: ऐसे कई स्वास्थ्य मुद्दे हैं जो जन्म के बाद समय से पहले बच्चों को परेशान करते हैं जिनके बारे में नए माता-पिता को पता होना चाहिए,उनमें से प्रीमेच्योरिटी रेटिनोपैथी दुनिया भर में बचपन के अंधेपन का प्रमुख कारण होता जा रहा है. रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी नाम की बीमारी का खतरा समय से पहले जन्मे बच्चों के साथ होता है.20 से 40 हफ्ते के बीच शिशु की आंख में रेटिना का विकास होता है अगर शिशु का जन्म 28 में हफ्ते हो गया है तो आंख की रोशनी के जाने का खतरा बढ़ जाता है.ऐसे बच्चों की आंखों में देखने की क्षमता नहीं हो पाती.
क्या है रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी
रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी आंखों से जुड़ी एक समस्या है, इस बीमारी में आंख के परदे की रक्त वाहिका सिकुड़ जाती है. जन्म के समय प्रीमेच्योर शिशुओं को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है इससे शिशु की आंखों की रोशनी घर जाती है और आगे चलकर आंखों से जुड़ी समस्याएं हो जाती है.आपको बता दें कि गर्भावस्था के 16 सप्ताह के आसपास बच्चों की आंखें विकसित होने लगती है. अगर बच्चा समय से पहले पैदा हुआ तो ऐसे में आंखों की रक्त वाहिका की विकसित होने की पर्याप्त समय नहीं मिल पाती है. नतीजा यही होता है कि रक्त कोशिकाएं आंखों में विकसित होने की जगह पूरे रेटिना में बढ़ने और फैलने लगती है. यह सामान्य रक्त वाहिकाएं नाजुक और कमजोर होती है और लीक हो सकती है. रेटिनल डिटैचमेंट की वजह से विजुअल इंपेयरमेंट और बचपन की अंधेपन की समस्या हो सकती है.
किन बच्चों को होती है ये बीमारी
इस बीमारी से बचाव के लिए रोप टेस्ट किया जाता है. जो बच्चे समय से पहले या प्रीमेच्योर होते हैं उन्हें रोप टेस्ट की जरूरत होती है. जिन महिलाओं की प्रेगनेंसी आईवीएफ तकनीक से होती है उन्हें भी बच्चों के जन्म के बाद रूप टेस्ट कराना चाहिए. जन्म के 30 दिन के अंदर ही यह जांच कराना सही होता है.
आरओपी के मुख्य लक्षण
- मयोपिया
- नेत्रों का तिरछापन
- सुस्त आंख
- आंखों में रक्त स्राव
- मोतियाबिंद
रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी का इलाज कैसे किया जाए?
लेजर थेरेपी: आरओपी के लिए मानक उपचार के तौर पर लेजर थेरेपी का प्रयोग किया जा सकता है. यह थेरेपी रेटिना के आसपास असामान्य रक्त वाहिका को जला देती है.लेजर उपचार, से नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा एवस्कुलर रेटिना का इलाज किया जाता है ताकि रेटिना की ऑक्सीजन की मांग को कम किया जा सके और असामान्य रक्त वाहिकाओं के गठन को रोका जा सके.
क्रायोथेरेपी: रक्त वाहिकाओं को रेटिना पर फैलने से रोकने के लिए क्रायोथेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है.इसे कोल्ड थेरेपी भी कहा जा सकता है.ये आरओपी उपचार का एक पुराना रूप है.
एंटी वीईजीएफ:इलाज के लिए एंटी वीईजीएफ दवाओं पर शोध जारी है. एंटी वीईजीएफ दवाई रेटिना में रक्त वाहिका के अतिवृधि को रोकने का काम करती है. इस दवा को आंखों में तब इंजेक्ट किया जाता है जब उसे एनेस्थीसिया दिया जाता है, हालांकि आरओपी से इलाज के लिए किसी भी दवा को खाद और औषधि प्रशासन की मंजूरी नहीं मिली है.आरओपी वाले शिशुओं को नियमित जांच की आवश्यकता होती है क्योंकि इस स्थिति से आंखों की गलत दिशा, ग्लूकोमा का खतरा बढ़ने और निकट दृष्टि दोष के अलावा स्थायी अंधापन जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
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Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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