लंदन: मलेरिया इंफेक्‍शन को लेकर शोधकर्ताओं ने एक बेहद अहम खुलासे में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को मलेरिया इंफेक्‍शन का खतरा उसे काटने वाले मच्छरों की संख्या पर नहीं, बल्कि प्रत्येक मच्छर में मौजूद पैरासाइट्स की संख्या पर निर्भर करता है. एक शोध में इस बात का खुलासा किया गया है.

कैसे होता है मलेरिया इंफेक्‍शन-

दरअसल, मलेरिया इंफेक्‍शन मच्छरों द्वारा व्यक्ति को काटने और इस दौरान उसके द्वारा ह्यूमन ब्‍लड में छोटे-छोटे पैरासाइट्स को छोड़ने से होता है. ये पैरासाइट्स मच्छरों की सिलेवेरी ग्‍लैंड में रहते हैं.

इसके बाद पैरासाइट्स व्यक्ति के लीवर में पहुंच जाते हैं, जहां वे बढ़ते हैं और 8 से 30 दिनों तक अपनी संख्या में इजाफा करते हैं, जिसके बाद वे ब्‍लड के जरिए पूरे शरीर में फैल जाते हैं और तब मलेरिया के सिम्‍टम्‍स सामने आते है.

मलेरिया वैक्‍सीन-


लंदन के इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मलेरिया के लिए एकमात्र वैक्‍सीन आरटीएस है. ये तब बहुत कम प्रभावी हो जाता है, जब चूहे या इंसान को एक ऐसा मच्छर काटता है, जिसके सलाइवा में पैरासाइट्स की संख्या बेहद अधिक होती है.

इसलिए वैक्‍सीन नहीं हो पाती पूरी तरह से प्रभावी-

यह शोध इस बात का भी जवाब है कि क्यों मात्र 50 फीसदी मामलों में ही मलेरिया की वैक्‍सीन प्रभावी होती है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यह वैक्‍सीन एक निश्चित अनुपात में ही पैरासाइट्स को मार पाता है और जब पैरासाइट्स की संख्या बहुद ज्यादा होती है, तो यह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाता.

क्‍या कहते हैं शोधकर्ता-

इंपीरियल कॉलेज के एंड्र्यू ब्लागबोरो ने कहा कि स्‍टडी ने इस बात को दर्शाया है कि मलेरिया की सफल रोकथाम में वैज्ञानिक इसलिए असफल रहे हैं, क्योंकि उन्होंने केवल उस आवधारणा को माना कि यह इंफेक्‍शन ज्यादा से ज्यादा मच्छरों के काटने से होता है."

ब्लागबोरो ने कहा कि शोध का निष्कर्ष बेहद महत्वपूर्ण है और मलेरिया तथा वाहकों के माध्यम से होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए वैक्‍सीन का विकास करते समय इस निष्कर्ष को ध्यान में रखना चाहिए.

यह शोध पत्रिका 'पीएलओएस' में प्रकाशित हुआ है.