सिडनी/मैनचेस्टर: जेएएमए पीडियाट्रिक्स नाम की पत्रिका में प्रकाशित ताजा रिसर्च से पता चला है कि ऐसे बच्चे जिनमें ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण हों, उनकी पहले ही साल में थैरेपी शुरू करने के बहुत फायदे होते हैं क्योंकि इस उम्र में दिमाग तेजी से विकसित हो रहा होता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि जिन बच्चों को 12 माह की उम्र में थैरेपी दी गई उनका तीन साल की उम्र में फिर आकलन किया गया. उससे पता चला कि उनके व्यवहार में उन बच्चों के मुकाबले ऑटिज्म संबंधी बर्ताव मसलन सामाजिक संवाद में मुश्किल आना या बातों का दोहराव करना कम देखे गए, जिन्हें थैरेपी नहीं दी गई थी. 


ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण में थैरेपी है फायदेमंद


तंत्रिका तंत्र के विकास (न्यूरोडेवलपमेंटल कंडिशन) संबंधी सभी स्थितियों की तरह ही ऑटिज्म में भी देखा जाता है कि बच्चा क्या नहीं कर पा रहा है. ‘द डाइनोस्टिक्स ऐंड स्टेटिस्टिकल मैन्युअल’ एक मार्गदर्शिका है जिसमें व्यवहार के बारे में जानकारी दी गई है जिनसे तंत्रिका तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पता लगाया जा सकता है.


पहले की तुलना में सामाजिक संवाद कौशल सीखने में अब ज्यादा बच्चों को मुश्किलें आने लगी हैं जिससे ऑटिज्म विकार से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ गई है और एक अनुमान के मुताबिक संख्या आबादी का करीब दो फीसद है. शोधकर्ताओं ने बताया कि सामाजिक एवं संवाद कठिनाइयां ऐसे बच्चों के वयस्क होने पर उनकी शिक्षा, रोजगार और संबंधों के लिए रूकावट पैदा कर सकती हैं. 


बच्चों के सामाजिक संवाद विकास में मददगार थैरेपी


रिसर्च में जिस थैरेपी का जिक्र आया है उसका उद्देश्य कम उम्र में ही सामाजिक संवाद कौशल बढ़ाने में मदद देना है ताकि आगे जाकर, जब बच्चे बड़े हों तो उन्हें समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े. थैरेपी का नाम है ‘आईबेसिस-वीआईपीपी’ जिसमें वीआईपीपी का मतलब है ‘वीडियो इंटरेक्शन फॉर पॉजीटिव पेरेंटिंग’. इसका इस्तेमाल ब्रिटेन में सामाजिक संवाद विकास में मदद देने के लिए किया गया. इसमें बच्चों के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रखनेवाले अभिभावक या बच्चों की देखभाल करने वाले लोगों को इस बारे में सिखाया जाता है. 


डेल्टा वेरिएन्ट से मिलता जुलता AY.4 स्ट्रेन महाराष्ट्र में बढ़ा, आखिर किस बात का है ये संकेत?


भारत में कोरोना संक्रमण अब 'एंडेमिक' बनने की राह पर, जानिए क्या है इसका मतलब


थैरेपी में अभिभावकों को बच्चे के संवाद को पहचानना सिखाया जाता है ताकि अभिभावक उस पर इस तरह से प्रतिक्रिया दे सकें कि बच्चे का सामाजिक संवाद विकास हो. बच्चे से बात करते अभिभावकों का वीडियो बनाया जाता है और फिर उसके आधार पर प्रशिक्षित थैरापिस्ट उन्हें सलाह देते हैं और बताते हैं कि बच्चे के साथ संवाद कैसे बनाए रखा जा सकता है.