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जानें क्यों जरूरी है बच्चों के लिए मीजल्स-रुबेला वैक्सीनेशन, वैक्सीनेशन से पहले क्या बरतें सावधानियां

Measles Rubella Vaccination: आखिर मीजल्स-रूबेला वैक्सीनेशन की जरूरत क्यों है. जानिए, क्या कहते हैं एक्सपर्ट.

नई दिल्लीः देशभर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा मीजल्स और रूबेला (एमआर) टीकाकरण अभियान चल रहा है. इस बीच खबरें आ रही हैं कि बच्चे  वैक्सीनेशन के बाद बीमार पड़ रहे हैं और अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं. वहीं यूपी के पीलीभीत जिले से भी खबर है कि मीजल्स-रुबेला के टीकाकरण के बाद एक 12 साल की बच्ची की मौत की भी खबर आ रही है. हालांकि इस अभियान के तहत मीजल्स और रूबेला (एमआर) टीकाकरण देशभर के करोड़ों बच्चों को वैक्सीनेशन लगाया जाना है.

इन सबके बारे में एबीजी न्यूज़ ने कई डॉक्टर्स और एक्सपर्ट से बातचीत की और जाना कि आखिर मीजल्स-रूबेला वैक्सीनेशन की जरूरत क्यों है. जानिए, क्या कहते हैं एक्सपर्ट.

अपोलो हॉस्पिटल के पीडियाट्रिशियन डॉ. ए.के.दत्ता का इस मामले में कहना है कि मैं नहीं मान सकता कि वैक्‍सीनेशन से बच्चे इतना बीमार पड़ रहे हैं या इससे मौत हो रही है. मीजल्स–रूबेला वैक्सीनेशन ना सिर्फ सेफ है बल्कि इन दोनों वायरस को जड़ से खत्म करने के लिए बहुत जरूरी भी है. डब्ल्यूएचओ भी इन वायरस को जड़ से खत्म करने के लिए एमआर वैक्सीनेशन का समर्थन करता है.

रूबेला और मीजल्स इंफेक्शान से हो सकती हैं ये बीमारियां- भारत में मीजल्स यानि खसरा के कारण बच्चों की मौत हो रही है और बच्चे बीमार पड़ रही हैं. मीजल्स की वजह से बच्चों को इंसेफेलाइटिस, निमोनिया, डायरिया जैसी समस्याएं हो रही हैं. सिर्फ मीजल्स की एक डोज ही हमेशा के लिए मीजल्स से नहीं बचा सकती है बल्कि इसके लिए दो से तीन बार टीके दिए जाना जरूरी है. वहीं रूबेला वैक्सीनेशन नवजात को इंफेक्शन से बचाता है. लेकिन यदि गर्भवती महिला को फर्स्ट ट्राइमिस्टर में रूबेला हो जाए तो इससे बच्चे को जन्मजात रूबेला सिंड्रोम हो सकता है और उसे कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. ऐसे में रूबेला और मीजल्स वैक्सीनेशन बहुत जरूरी है.

एमआर वैक्सीनेशन देने की ये है सही उम्र - रूबेला वैक्सीनेशन 1 साल से 15 साल की उम्र तक दिया जाना जरूरी है और इस उम्र के बीच दो से तीन बार इसका टीकाकरण जरूरी है ताकि बच्चे को रूबेला और मीजल्स इंफेक्शन से बचाया जा सके.

एमआर वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट- एमआर वैक्सीनेशन से होने वाले साइड इफेक्ट्स में इंजेक्शन देने के बाद सात दिन तक बुखार होना आम बात है. रेड रैशेज होना भी आमबात  है. कभी-कभी इंजेक्शन के बाद चक्कर भी आ सकते हैं. ये भी लक्षण सात दिन के बाद नहीं होते.

यशोदा सुपर स्पेशेलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी गाजियाबाद की डॉ. रूबी बंसल का कहना है कि वैक्सीनेशन इंफेक्शन और गंभीर डिजीज को होने से रोकने के लिए लगवाया जाता है. आमतौर पर कोई भी वैक्सी‍नेशन देशभर में उस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए लगवाया जाता है. इसका जीता-जगता उदाहरण है पोलियो.

70-80 तक प्रभावी होता है वैक्सीनेशन- खसरा और रूबेला इंफेक्शन के लिए एक कॉमन वैक्सीनेशन मीजल्स-रूबेला (एमआर) हैं. डॉ. रूबी का कहना है कि कोई भी वैक्सीनेशन शरीर में एंटीबॉडी का काम करता है जो कि शरीर को बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार करती है. वैक्सीनेशन आमतौर पर 70 से 80 फीसदी तक काम करती हैं.

डॉ. रूबी कहती हैं कि मैं इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती कि सिर्फ वैक्सीनेशन से ही बच्चे बीमार पड़ रहे हैं या फिर उनकी मौत हो गई है. हां, ये जरूर है कि वैक्सीनेशन के कुछ साइड इफेक्ट्स होते हैं लेकिन ये कुछ समय के बाद अपने आप ठीक हो जाते हैं.

डॉ. रूबी ये भी कहती हैं कि हर शरीर का इम्यून सिस्टम और सेंसिटिविटी अलग-अलग होती है. इसीलिए ये जरूरी नहीं कि हर वैक्सीनेशन का असर सब पर एक जैसा ही हो. ऐसे में अगर कुछ बच्चे वैक्सीनेशन से बीमार पड़ रहे हैं तो इसे अन्य बच्चों को लगाने के लिए रोकना गलत होगा.

कम्यूनिटी मेडिसिन एंड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के प्रोफेसर डॉ. अरूण कुमार अग्रवाल का इस मामले में कहना है कि ये बात सही है कि कोई भी चीज 100 फीसदी तक सही होती है. हर चीज के फायदे, नुकसान और कॉम्पलिकेशंस होते हैं. लेकिन इस तरह के अभियान में फायदे और नुकसान का रेशों देखा जाता है. यदि ऐसे अभियान के तहत रिस्क के मुकाबले फायदा अधिक होता है तो उसे आगे बढ़ाया जाता है. जैसे 1 लाख में से किसी 1 को रिस्क‍ है तो इसे स्वीकार किया जाता है. वैक्सीनेशन की खासियत ये होती है कि इसे देशभर में मुफ्त एक साथ चलाया जाता है. रही बात रूबेला और मीजल्स की बात तो ये बीमारी डॉक्यूमेंटिड है. इसकी वैक्सीनेशन ना सिर्फ सेफ है बल्कि प्रभावी भी है. WHO भी इसका समर्थन करता है.

हां, कैंपेन मोड में जब वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलते हैं तो ये एक साथ बहुत सारे बच्चों को लगाया जाता है. ऐसे में 1 लाख में से 1 बच्चा बीमार होता है तो इस कैंपेन के तहत 10 लाख में से 10 बच्चें एक साथ बीमार होंगे. ऐसे में ये सामान्य घटना है.

डॉ. अरूण अग्रवाल बताते हैं जब भी ऐसे अभियान चलते हैं तो इसके लिए हर स्टेट में ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाते हैं. पूरी टीम को तैयार किया जाता है. ट्रेनिंग प्रोग्राम में कई बातों का ध्यान रखा जाता है-

  • कई बार वैक्सीनेशन कैंपेन के दौरान बच्चों में पैनिक रिएक्शन होता है. जब एक बच्चे को इंजेक्शन लगता है और वो रो रहा होता है तो उसको देखकर बाकी बच्चे भी घबराने लगते हैं. वहीं कुछ बच्चों को इंजेक्शन का फोबिया होता है. ऐसे में ट्रेनिंग के दौरान डॉक्टर्स को बताया जाता है कि इंजेक्‍शन सभी बच्चों के सामने ना लगाएं. अगर ऐसी प्रीकॉशंस नहीं ली जाती तो बच्चे डर के मारे बेहोश भी हो सकते हैं. ना की वैक्सीनेशन के कारण. साइक्लॉजिकल स्ट्रेस के कारण भी बच्चे वैक्सीनेशन कैंपेन में बीमार पड़ जाते हैं.
  • ट्रेनिंग के दौरान डॉक्टर्स को बताया जाता है कि वैक्सीनेशन सही तरह से अनुकूल टेंप्रेचर में रखें.
  • वैक्सीनेशन से पहले बच्चे की बेसिक हिस्ट्री जानी जाती है. यदि बच्चे को बुखार या कोई अन्य बीमारी है तो उसे वैक्सीनेशन देने से पहले विचार किया जाता है.
  • यदि किसी बच्चे की मौत हो गई है तो इस पर पूरी छानबीन जरूरी है कि मौत का क्या कारण है. वैक्सीनेशन इसकी वजह होना बहुत मुश्किल है. हां, इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे वैक्सीनेशन गलत दिया गया हो या फिर बच्चे को कोई गंभीर बीमारी हो. मौत की असल वजह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ही सामने आती है.
  • ट्रेनर्स को ये भी सिखाया जाता है कि वे बच्चों को वैक्सीनेशन देने से पहले बताते हैं कि उन्हें ये वैक्सीनेशन क्यों दिया जा रहा है. जिससे उनमें कोई पैनिक रिएक्शन ना हो.
  • इसके अलावा ये भी ध्यान दिया जाता है कि इंजेक्शन नया और पैक्ड हो और सेफ हो.
  • डॉक्टर ने साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए हाथों को अच्छी तरह से धोया हो. मास्क पहना हो. ताकि बच्चे सुरक्षित रहें.
ये एक्सपर्ट के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.

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