दुनिया भर में माइक्रोबियल प्रतिरोधकता (एएमआर) बड़ी चुनौती बन गई है, जिससे खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) और कमजोर वर्गों के लोग प्रभावित हो रहे हैं. प्रभावी एंटीमाइक्रोबायल्स मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम हैं और इन्हें वैश्विक सामान्य संपदा के रूप में देखा जाना चाहिए.


क्या है माइक्रोबियल प्रतिरोधकता?


माइक्रोबियल प्रतिरोधकता यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है, जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक, और परजीवी जैसे सूक्ष्मजीव दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं. एएमआर की वजह से दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना मुश्किल हो जाता है. इससे संक्रमण फैलने, गंभीर बीमारी और मौत होने का खतरा बढ़ जाता है. एएमआर की वजह से रोगियों को अस्पतालों में काफी समय तक रहना पड़ता है और उन्हें गहन देखभाल की जरूरत होती है. इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ता है और स्वास्थ्य देखभाल की लागत में भी इजाफा होता है.


एक्सपर्ट्स ने दी यह जानकारी


संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2024 में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधकता (एएमआर) पर उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसमें माइक्रोबियल प्रतिरोधकता यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) पर चर्चा की गई. इस पर हमने कुछ एक्सपर्ट से बात की, जिन्होंने बताया कि बीते कुछ साल से नॉर्मल और रिस्ट्रिक्टेड एंटीबायोटिक का काफी ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, जिसकी वजह से लोगों पर इसका असर धीरे-धीरे कम हो रहा है.


कैसे मिलेगा फायदा?


एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधकता (एएमआर) के प्रभाव को कम करने के लिए उच्च आय और ऊपरी मध्यम आय वाले देशों को घरेलू संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करना होगा. सीमित संसाधन वाले देशों को राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को लागू करने में सहायता की आवश्यकता होगी. राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर संसाधन संग्रहण को बढ़ावा देना होगा. इसके अलावा राजनीतिक प्रतिबद्धता समर्थन और संसाधन जुटाने की शुरुआत करनी होगी.


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