नई दिल्ली: मानसून अपने साथ कई बीमारियां लेकर आता है. दरअसल, बरसात के मौसम में जगह-जगह पानी भर जाता है और पनपते हैं कई बीमारी फैलाने वाले मच्छर. आज हम आपको कुछ ऐसी कॉमन बीमारियों के बारे में बता रहे हैं जो मानसून के आते ही होने लगती हैं. लेकिन आप थोड़ा सी देखभाल से इन बीमारियों से आसानी से बच सकते हैं.
मलेरिया-
बरसात के मौसम में मलेरिया होना बहुत आम बात है. ये एक संक्रमित बीमारी है जो मच्छरों के कारण फैलती है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, मलेरिया होने के शुरूआती लक्षणों में बुखार, कंपकपी और उल्टियां आना शामिल है. यदि आपको भी इनमें से कोई लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और ब्लड टेस्ट करवाएं.
डेंगू और चिकनगुनिया-
बारिश के मौसम में डेंगू और चिकनगुनिया ऐसी बीमारियां हैं जो बहुत ज्यादा फैल जाती हैं. दरअसल, डेंगू और चिकनगुनिया बारिश में इसलिए भी खतरनाक होती हैं क्योंकि डेंगू और चिकनगुनिया का लार्वा नमी मिलते ही सक्रिय हो जाता हैं. आपको जानकर हैरानी होगी जहां मरम्मत या निर्माण का काम चल रहा होता है वहां डेंगू और चिकनगुनिया का लार्वा सबसे ज्यादा पाया जाता है. पानी भरे होने के कारण लार्वा जल्दी एक्टिव हो जाता है. डेंगू और चिकनगुनिया मादा एडिस एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलते हैं. डेंगू और चिकनगुनिया के लक्षणों में तेज बुखार, जोड़ों में दर्द, मसल्स में और हड्डियों में दर्द की शिकायत, शरीर पर लाल चकते पड़ना, सिरदर्द होना और हल्की ब्लीडिंग होना बहुत आम है.
टायफायड-
बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा बीमारियां गंदे पानी के पीने से होती हैं. टाइफाइड उनमें से एक है. यह बहुत ही गंभीर बीमारी है.
टाइफायड को एंटीबायोटिक दवाइयों से रोका और उपचार किया जा सकता है. इसके जीवाणु का नाम साल्मोनेला टाइफी है. आंत्र ज्वर यानी मियादी बुखार से पीड़ित व्यक्तियों को लगातार 103 से 104 डिग्री फैरेनहाइट का बुखार बना रहता है. उन्हें कमजोरी भी महसूस हो सकती है, पेट में दर्द, सिर दर्द अथवा भूख कम लग सकती है.
यैलो बुखार-
लेप्टोस्पायरोसिस को फील्ड फीवर, रैट काउचर्स यैलो और प्रटेबियल बुखार के नाम से भी जाना जाता है. ये एक संक्रमण है जो लेप्टोस्पाइरा कहे जाने वाले कॉकस्क्रू आकार के बैक्टीरिया से फैलता है.
बैक्टीरिया से फैलने वाला लेप्टोस्पाइरोसिस रोग बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा होता है. यह रोग ऐसा है जो खुद ही कई और रोगों को पैदा करने का कारण भी हो सकता है. इस रोग का बैक्टीरिया मानव में सीधे ही प्रवेश न करके जीवों जैसे भैंस, घोड़ा, बकरी, कुत्ता आदि की सहायता से प्रवेश करता है और इस बैक्टीरिया का नाम है लैप्टोस्पाइरा. यह बैक्टीरिया इन जानवरों के मूत्र विसर्जन से प्रकृति में आता है. यह नमी युक्त वातावरण में लम्बे समय तक जीवित रहता है. इसके लक्षणों में हल्के-फुल्के सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और बुखार; से लेकर फेफड़ों से रक्तस्राव या मस्तिष्क ज्वर जैसे गंभीर लक्षण शामिल हो सकते हैं.
इसके अलावा मानसून में हैजा, दस्त, फूडप्वॉइजिंग, एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इन सबसे साफ-सफाई रखकर और साफ-सुथरा रहकर बचा जा सकता है.
इन बातों का ध्यान रख बच सकते हैं मानसून में होने वाली बीमारियों से -
- गंदे पानी का सेवन ना करें.
- संभव हो तो पानी को उबाल कर पीएं.
- अधिक से अधिक पानी पीएं.
- दूषित पानी में ना नहाएं.
- अपने आसपास पानी जमा ना होने दें.
- पानी को भरकर ना रखें.
- ताजा खाना खाएं.
- जंकफूड और ऑयली खाने के बजाए ताजा फल और सब्जियां खाएं.
- फल और सब्जियां धोकर खाएं.
- बाहर के खाने से बचें.
- मच्छरों से बचाव के लिए दवा का छिड़काव करवाते रहें और मच्छर से बचाव के लिए मच्छरदानी लगा कर सोएं और
- मच्छरों से बचने के लिए क्रीम या लोशन लगाएं.
- इन सबके अलावा सुबह उठकर ताजी हवा में व्यायाम करें.
- इन सब चीजों को करने से आप निश्चित तौर पर बीमारियों से बचे रह सकते हैं.
नोट: आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.