हेल्थ इंश्योरेंस कराते समय कई बार लोग इंश्योरेंस से पहले की बीमारी को छुपा लेते हैं. कुछ मौकों पर बीमा एजेंट भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. लेकिन ऐसा करना खुद को नुकसान पहुंचाना है. ऐसा करने से कंपनी पहले से बीमारी होने (प्री-एक्जिट डिसीज) के नाम पर क्लेम देन से इनकार कर सकती है. हाल ही में कई लोगों ने मेडिक्लेम करवाया जिसमें कंपनी ने कहा कि इसमें COVID-19 के साथ-साथ अन्य पुरानी बीमारियों का भी कवर होगा लेकिन मेडिक्लेम की बात आई तो इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम को रिजेक्ट कर दिया.  


Beshak.org के महावीर चोपड़ा का कहना है कि हेल्थ इंश्योरेंस के वक्त अगर कोई व्यक्ति फॉर्म में महत्वपूर्ण फैक्ट को छुपाता है तो कंपनी हेल्थ क्लेम को रिजेक्ट कर सकती है. चोपड़ा ने बताया कि अगर इंश्योरेंस फॉर्म में कोई व्यक्ति hypertension की बात छुपाता है और वह Vitamin deficiency के कारण अस्पताल में भर्ती होता है तो उसका भी मेडिक्लेम रिजेक्ट हो जाएगा. 


बीमारी के तथ्य को छुपाना नहीं चाहिए
Digit Insurance के डॉ सुधा रेड्डी ने बताया कि कोरोना कवच वाले इंश्योरेंस में भी अगर कोई व्यक्ति महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाता है, खासकर Co-morbidities को, तो क्लेम लेने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. co-morbidities के कारण कोरोना का असर बहुत ज्यादा घातक हो जाता है. इसलिए कंपनियां पहले से ही यह तय कर लेती है कि इंश्योरेंस कराने वाले व्यक्तियों में co-morbidities है या नहीं. डॉ रेड्डी कहती हैं कंपनियों पॉलिसी होल्डर द्वारा फॉर्म में भरी गई बातों पर भरोसा करती है. अगर इस भरोसे को तोड़ा जाए तो क्लेम के वक्त कई दिक्कतें आ सकती है. 


क्या होती है pre-existing diseases
इंश्योरेंस रेग्युलेटर IRDAI ने pre-existing diseases या पहले की बीमारी को इस प्रकार परिभाषित किया है. इसके मुताबिक इंश्योरेंस कराने के वक्त से 48 महीने पहले अगर किसी व्यक्ति को किसी तरह की बीमारी या दुर्घटना का शिकार होना पड़ा है जिसमें उसने डॉक्टर से इलाज कराया या उसका इलाज चल रहा है या डॉक्टर की सलाह की दरकार है तो ऐसी स्थिति को pre-existing diseases मानी जाएगी. आमतौर पर ऐसी बीमारी तभी कवर हो सकती है जब चार साल तक इसके लिए वेट किया जाए. प्रत्येक पॉलिसी में अलग-अलग नियम शर्तं होती हैं.


एड्स, दांतों का इलाज, मनोरोग संबंधी विसंगति, लिंग परिवर्तन सर्जरी, कास्मेटिक सर्जरी, खुद को नुकसान पहुंचाने से लगी चोट जैसे मामले किसी भी स्टैंडर्ड हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के दायरे में नहीं होते हैं. ज्यादातर स्टैंडर्ड हेल्थ पॉलिसी में किसी भी तरह के इलाज के लिए 30 से 90 दिनों का वेटिंग पीरियड होता है, यानी इतनी अवधि के बाद ही किसी बीमारी पर क्लेम मिल सकता है. इसलिए ग्राहकों को पॉलिसी के बारे में जान लेना चाहिए कि कौनसी बीमारियां दायरे में हैं और कौन सी नहीं.


क्लेम रद्द होने का खतरा 
स्वास्थ्य जांच पर खर्च करना आपके लिए दोहरा फायदेमंद हो सकता है. बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य जांच कराने के बाद आप बीमा खरीदते हैं तो कुछ बीमारियों की वजह से उसका प्रीमियम जरूर थोड़ा महंगा हो जाता है. लेकिन ऐसी पॉलिसी में क्लेम मिलना भी ज्यादा आसान हो जाता है. साथ ही संबंधित बीमारियों का कवर भी आसानी से मिल जाता है जो जिससे आपकी जेब हल्की होने से बच जाती है.


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