आपकी-हमारी जिंदगी में डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसके काफी खराब नतीजे भी सामने आने लगे हैं. दरअसल, इंसान अब हर कदम पर तकनीक से जुड़ चुका है. अब मसला चाहे एंटरटेनमेंट का हो या इंफर्मेशन का, बिना डिजिटल डिवाइस के आगे बढ़ना नामुमकिन है. वहीं, खाली वक्त को गैजेट्स के बिना गुजारना भी बेहद मुश्किल हो चुका है. कई बार तो ऐसा होता है कि एंटरटेनमेंट के चक्कर में इंसान अपना पूरा वक्त गैजेट्स पर ही खत्म कर देता है और जब तक उसे अंदाजा लगता है, तब तक दिन गुजर जाता है. गैजेट्स पर वक्त गुजारने की बात करें तो खासकर बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी ज्यादा बढ़ चुका है. इसका असर उनके सोशल बिहेवियर पर भी नजर आने लगा है. आइए आपको ऐसा तरीका बताते हैं, जिसकी मदद से बच्चे की दिमागी सेहत बस दो हफ्ते में सुधर जाएगी.


ऐसा था प्री-डिजिटल युग


80 और 90 के दशक के लोगों को अपना वक्त बखूबी याद होगा, जिसे प्री-डिजिटल युग भी कहा जाता है. उस वक्त बच्चे अपनी एनर्जी दोस्तों के साथ आउटडोर गेम्स खेलने में बिताते थे. इससे बच्चे चुस्त-दुरुस्त बने रहते थे और वे बीमारियों की चपेट में भी काफी कम आते थे. हालांकि, अब ऐसा नहीं है. अब बच्चों के पास गैजेट्स होते हैं, जिससे उनका वक्त आराम से बीत जाता है और उन्हें अपने बेडरूम से कदम बाहर निकालने की भी जरूरत नहीं पड़ती है.


बच्चों पर पड़ रहा खराब असर


डिजिटल युग में गैजेट्स की वजह से बच्चे दिनभर व्यस्त रहते हैं और हर तरह के कंटेंट से रूबरू होते हैं. ऐसे में काफी ज्यादा वक्त स्क्रीन पर गुजारने से उनकी मानसिक सेहत भी बिगड़ रही है. दरअसल, यूनिवर्सिटी ऑफ सर्दर्न डेनमार्क ने एक स्टडी की है, जिसमें बताया गया कि अगर स्क्रीन टाइम कम कर दिया जाए तो बच्चों की मेंटल हेल्थ को इंप्रूव किया जा सकता है. स्टडी में यह भी बताया गया कि अगर हर सप्ताह बच्चों का स्क्रीन टाइम औसतन तीन घंटे कम कर दिया जाए तो अगले दो सप्ताह में उनके व्यवहार में सुधार आने लगता है.


बच्चे में ऐसे आएगा सुधार


आमतौर पर बच्चे रोजाना सात से आठ घंटे गैजेट्स पर बिताकर अपना एंटरटेनमेंट कर रहे हैं. इस दौरान वे गेम्स खेलते हैं या मूवीज देखते हैं. स्टडी में सामने आया कि अगर इस स्क्रीन टाइम को तीन घंटे तक कम कर दिया जाए तो वे भावनात्मक तौर पर स्टेबल हो जाते हैं. अगर आप महज 14 दिन तक यह प्रक्रिया आजमाते हैं तो बड़ा बदलाव नजर आने लगता है. दरअसल, स्क्रीन टाइम कम करने से बच्चे ज्यादा सामाजिक, विचारशील और दूसरों के लिए मददगार बनने लगते हैं. इसके अलावा वे अपने दोस्तों से भी बातचीत और मुलाकात का सिलसिला बढ़ा लेते हैं. दरअसल, बच्चों में हर वक्त एनर्जी रहती है, जो गैजेट्स यूज करने पर खर्च नहीं होती. ऐसे में ज्यादा एनर्जी की वजह से वे परेशान होने लगते हैं. स्क्रीन टाइम कम होने से वे अपनी एनर्जी का इस्तेमाल करने लगते हैं, जिसका असर उनके व्यवहार पर नजर आने लगता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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