मरीज ने यह कहते हुए यह मुद्दा उठाया था कि विशिष्ट हस्तियों के मामले में मीडिया द्वारा मामले पर ध्यान दिये जाने से उनके लिए स्वैच्छिक दानदाता आसानी से मिल जाता है. किन्तु आम लेागों को विज्ञापनों का फायदा उठाने का अधिकार नहीं है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के वकील राजेश गोगना ने कहा कि याचिकाकर्ता अपना नाम राष्ट्रीय अंग एवं उत्तक प्रतिरोपण संगठन (नोट्टो) में दर्ज करा सकता है ताकि उसके विषय को ‘अति आवश्यक’ श्रेणी के तहत उठाया जा सके. अदालत ने नोट्टो का जवाब मांगा था क्योंकि मरीज ने उसे समाप्त करने की मांग की थी.
पिछले 15 सालों की अपनी व्यथा बता चुके मरीज विनोद कुमार आनंद ने कहा कि उन्हें विज्ञापन की अनुमति दी जाए क्योंकि कुछ धार्मिक बाध्यता के कारण वह नोट्टो से किडनी नहीं ले सकते.