दिल्ली AIIMS ने ग्रासरूट (ग्रेविटी स्टेंट-रिट्रीवर सिस्टम फॉर रिपरफ्यूजन ऑफ लार्ज वेसेल ऑक्लूजन स्ट्रोक ट्रायल) क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत की. यह ट्रायल एडवांस्ड स्टेंट-रिट्रीवर की सुरक्षा और प्रभाविकता का मूल्यांकन करेगा. ग्रासरूट ट्रायल की सफलता से भारत में स्ट्रोक के इलाज में नए स्टैंडर्ड स्थापित होंगे. एडवांस्ड स्टेंट टेक्नोलॉजी से स्ट्रोक के मरीजों के इलाज में नई क्रांति आएगी. 


ग्रासरूट स्ट्रोक तकनीक ब्लड क्लॉट के इलाज के लिए है. इस तकनीक से कोई भी मरीज, जिनको ब्लड प्लॉट हो जाता है, उसका इलाज किया जा सकता है. हालांकि अभी इसके सिर्फ ट्रायल शुरू हुए हैं. भारत में इसका पहला केस दिल्ली एम्स में कामयाब रहा. डॉक्टरों के मुताबिक, मरीज एकदम ठीक है और ठीक होकर घर जा चुका है. हालांकि, अब इसके नतीजे को आगे एनालाइज किया जाएगा. इस ट्रायल की शुरुआत 15 अगस्त 2024 को हुई और पहले मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया गया. डॉ. दीप्ति विभा ने विश्वास जताया कि ग्रासरूट ट्रायल से भारत और विश्व में स्ट्रोक के इलाज में नई दिशा मिलेगी.


भारत में स्ट्रोक की बढ़ती समस्या का समाधान


भारत में स्ट्रोक के मरीजों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इलाज की सुविधा कम है. ग्रासरूट ट्रायल से स्ट्रोक के मरीजों को सुरक्षित और प्रभावी इलाज मिलेगा. भारत मे 1.45 अरब से अधिक लोग रहते हैं और भारत को स्ट्रोक के इलाज की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. हर साल अनुमानित 3.75 लाख स्ट्रोक के मरीजों में से महज 4500 को ही जीवन रक्षक मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टोमी उपचार मिलता है. डॉ. शाश्वत देसाई ने कहा कि लोगों को स्ट्रोक से बचाने के लिए भारत को अहम कदम उठाने होंगे.


एम्स में डॉ. शैलेश गायकवाड़ ने कहा कि इंटरवेंशनल स्ट्रोक ट्रीटमेंट में ग्रासरूट ट्रीटमेंट ट्रायल भारत के लिए बेहद अहम साबित होगा. हम एडवांस्ड नेक्स्ट-जेनरेशन स्टेंट-रिट्रीवर टेक्नोलॉजी का मूल्यांकन करने के लिए उत्साहित हैं.


भारत के 16 अस्पतालों में होगा ट्रायल


ग्रासरूट ट्रायल भारत के 16 अस्पतालों में चलाया जा रहा है, जिनमें ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस और जवाहरलाल इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रैजुएट एंड मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुडुचेरी शामिल हैं. 


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