ऑनलाइन एजुकेशन से बच्चों में बढ़ रहे हैं इस खतरनाक बीमारी के लक्षण, जानें इससे बचने के उपाय
मोबाइल-लैपटॉप पर घंटों ऑनलाइन पढ़ाई करते हुए बच्चे कई तरह के आई-गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे उनकी आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है. यह पैरेंट्स और शिक्षक दोनों की चिंता का विषय है.
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद से अब पढ़ाई-लिखाई डिजिटल मोड में ही चल रही. ऑनलाइन एजुकेशन अब कई स्कूलों में लागू है. इस बीच ऑनलाइन स्टडी के लिए छात्रों के बीच तरह-तरह के गैजेट्स का चलन भी बढ़ रहा है. मोबाइल-लैपटॉप पर घंटों ऑनलाइन पढ़ाई करते हुए बच्चे कई तरह के आई-गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे उनकी आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है.
हाल में न्यू पनवेल स्थित आरजे शंकर आई हॉस्पिटल द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, स्कूल और कॉलेज के छात्रों में 'ब्लर-विजन' की समस्या लगातार बढ़ रही है. इसे अपवर्तन दोष (Refractive Error) यानी अंधापन कहा जाता है. इसमें मरीज की आंखों द्वारा प्रकाश को रेटिना के ऊपर फोकस न कर पाना बल्कि रेटिना के पहले या बाद में फोकस करने की समस्या आती है.
लगातार बढ़ रहे हैं डिजिटल आई स्ट्रेन (DES) के केस
हॉस्पिटल द्वारा 247 बच्चों पर किये गए इस इस सर्वे में करीब 79 बच्चों की आंखों में इस नेत्रदोष के लक्षण देखे गए, जो कि सामान्य प्रवृत्ति 10-15 प्रतिशत की तुलना में 32 प्रतिशत था. आंखों से जुड़ी इस बीमारी में व्यक्ति की आंखों पर दृष्टि धुंधली हो जाती है और शुरुआत में सामान्य लक्षणों में सिरदर्द शामिल होता है. आगे चलकर यह गंभीर डिजिटल आई स्ट्रेन (DES) का कारण बन सकता है.
इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में हाल ही में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के अनुसार, सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 217 छात्रों में से 109 छात्र डीईएस से भी पीड़ित पाए गए, जिनमें से 26 प्रतिशत के लक्षण मामूली थे, 13 प्रतिशत मीडियम रेंज प्रभावित थे और 11 प्रतिशत गंभीर थे. डीईएस में सबसे आम लक्षण खुजली और सिरदर्द हैं. महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के बाद के शुरू किए गए ऑनलाइन एजुकेशन और ई-लर्निंग के कारण 36 प्रतिशत छात्रों के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस इस्तेमाल करने में लगने वाला औसत समय बढ़कर 5 घंटे हो गया था.
विजन थेरेपी के जरिये इलाज संभव
कई अन्य स्टडी के अनुसार, डिजिटल उपकरणों पर प्रतिदिन 4-5 घंटे बिताने वाले छात्रों के लिए डीईएस का जोखिम काफी बढ़ रहा है. आरजे शंकर आई हॉस्पिटल की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अंकिता ने कहा, अगर हमें डीईएस जैसी समस्या का शुरुआती लक्षणों में ही पता चल जाता है तो विजन थेरेपी इसके गंभीर लक्षणों को रोकने में मदद कर सकती है.
डॉ. अंकिता के मुताबिक, "विजन थेरेपी में विशेष चश्मे, फिल्टर, प्रिज्म और कंप्यूटर सहायता द्वारा इलाज किया जाता है. इसमें डॉक्टर मरीज की आंखों पर ध्यान केंद्रित करने, समन्वय और ट्रैकिंग में सुधार करते हैं. इसे क्लिनिक या घर पर भी किया जा सकता है.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों की एबीपी न्यूज़ पुष्टि नहीं करता है. इनको केवल सुझाव के रूप में लें. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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