बच्चों की गलती पर कहीं आप भी तो इस तरह नहीं निकालते गुस्सा? ये तरीका बच्चों के दिमाग पर डाल सकता है बुरा असर
साइकाइट्रिस्ट्स का कहना है कि फिजिकल पनिशमेंट यानी बच्चों को मारने-पीटने का असर उनकी मानसिक सेहत के लिए ठीक नहीं होता है. यह उनके लिए ट्रॉमेटिक एक्सीपिरियंस भी हो सकता है.
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Parenting Tips : सोशल मीडिया पर आए दिन कोई न कोई ऐसा वीडियो देखने को मिलता है, जब पैरेंट्स अपने बच्चों को पिटते नजर आते हैं. आजकल काफी आम हो गया है कि जब पैरेंट्स का गुस्सा बच्चे पर निकल जाता है. इसका असर उनके दिमाग पर नकारात्मक पड़ सकता है. यह जीवनभर उनके साथ रह सकता है. कुछ साइकाइट्रिस्ट्स का कहना है कि कहीं और का गुस्सा बच्चों पर निकालने से उनका मेंटल हेल्थ (Mental Health)बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जो आगे चलकर कई दिक्कतें पैदा कर सकता है. इसलिए जान लीजिए कि बच्चे पर गुस्से में हाथ क्यों नहीं उठाना चाहिए...
बच्चों को मारना नहीं चाहिए
साइकाइट्रिस्ट्स का कहना है कि फिजिकल पनिशमेंट यानी बच्चों को मारने-पीटने का असर उनकी मानसिक सेहत के लिए ठीक नहीं होता है. यह उनके लिए ट्रॉमेटिक एक्सीपिरियंस भी हो सकता है. इससे उन्हें एंग्जाइटी भी हो सकती है, जिसका असर दोस्ती और पढ़ाई पर होता है, क्योंकि बच्चे का कॉन्फिडेंस और भरोसा डगमगा जाता है. लंबे समय में यह काफी दिक्कतें दे सकता है. इससे बच्चों में डर बना रहता है कि अगली बार उन्हें कब मार पड़ने वाली है.
उiनके मन में बना रहता है कि कहीं गलती न कर बैठे. इससे वे अपने पैरेंट्स से कई बातें छुपाने भी लगते हैं या अपनी बात खुलकर नहीं रख पाते हैं. इसलिए पैरेंट्स को समझना जरूरी है कि बच्चों से ओपन रिलेशन रखें, ताकि वे बेझिझक अपनी कोई बात उनसे कह पाएं और उन्हें अपना दोस्त माने.
मार का बच्चों पर असर
एक्सपर्ट्स का कहना है कि, आपको लगता है कि बच्चे को मारकर उसमें डर बैठाकर किसी गलत काम को करने से रोक सकते हैं तो ये गलत है, क्योंकि रिसर्च में हमेशा पाया गया है कि मार खाने से बच्चों का गुस्सा बढ़ता है. अंदर ही अंदर उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस इतना ज्यादा कम हो जाता है कि वे खुद को एक्सप्रेस ही नहीं कर पाते हैं. इसका असर उन पर नकारात्मक पड़ता है. एक समय बाद बच्चे को इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता कि वह कोई गलत काम करेगा तो मार पड़ेगी. इतना ही नहीं समय के साथ उसके रिश्ते में कॉम्प्लेक्सिटी भी आने लगती है. उनका पहले की तरह अटैचमेंट नहीं रहता है और वे पैरेंट्स से दूर होने लगते हैं. उन
डांट-मार का बच्चों पर असर
दिमागी विकास रूक सकता है
एंग्जाइटी हो सकती है
भरोसा नहीं कर पाता है
बड़ा होने पर दुख और खालीपन आ जाता है
हर गलती के लिए खुद को दोषी मानता है
आत्मविश्वास-आत्मसम्मान में कमी
रिलेशनशिप, कम्यूनिकेशन स्किल्स, प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स प्रभावित होती है
क्या करें, क्या नहीं
1. पैरेंट्स को अपने गुस्से पर कंट्रोल रखना चाहिए. जहां तक हो सके बच्चे को गलती पर समझाएं.
2. बच्चों को सही-गलत बताएं, सुधरने का मौका दें.
3. जब बच्चे कुछ अच्छा करें तो खुलकर उनकी तारीफ भी करें.
4. बच्चों पर हाथ उठाने से बचें.
5. बच्चे की परेशानी समझने की कोशिश करें.
6. पढ़ाई में उसका इंटरेस्ट बढ़ाने की कोशिश करें.
7. बच्चे को मोटिवेट करें.
8. दूसरे बच्चों से उसकी तुलना न करें.
9. पैरेंट्स बच्चों से अपनी अपेक्षाएं कम करें.
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