World Parkinson's Day 2023: युवाओं में भी तेजी से फैल रही है पार्किंसंस की बीमारी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
World Parkinson's Day 2023: यंग जेनरेशन में तेजी से बढ़ रहा है पार्किंसंस की गंभीर बीमारी. डॉक्टर रितु झा ने इस बीमारी को लेकर खुलकर बातचीत की...
World Parkinson's Day 2023: पार्किंसंस (Parkinson Disease) की बीमारी पूरी तरह से नर्वस सिस्टम और ब्रेन से जुड़ी हुई है. यह बीमारी किसी भी व्यक्ति को उसके क्रोनिक एंड प्रोग्रेसिव न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर के कारण होती है. इसके होने का सबसे बड़ा कारण है 'सेंट्रल नर्वल सिस्टम' में गड़बड़ी. आमतौर पर यह बीमारी बुजुर्ग लोगों में देखने को मिलता है, खासकर 60 से ज्यादा उम्र वालों लोगों में. लेकिन आजकल यह गंभीर बीमारी नौजवानों को भी अपना शिकार बना रही है. फरीदाबाद के 'सर्वोदय हॉस्पिटल', न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी और एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. रितु झा ने इस बीमारी को लेकर खुलकर बातचीत की. साथ ही उन्होंने बताया कि आखिर क्यों आज की यंग जेनरेशन इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. जानिए...
सिर्फ जेनेटिक ही नहीं बल्कि इन कारणों से भी हो सकता है पार्किंसंस बीमारी
पर्यावरण के कारण भी हो सकता है पार्किंसंस
इस विभाग के स्पेशलिस्ट का दावा है कि नौजवानों में इस बीमारी के होने का एक कारण तो जेनेटिक भी हो सकता लेकिन कुछ हद तक पर्यावरण भी काफी हद तक प्रभावित करती है.पार्किंसंस की बीमारी का एक सटीक कारण बता पाना मुश्किल है, लेकिन इस बीमारी के होने के कई कारण हो सकते है. जेनेटिक्स सबसे महत्वपूर्ण कारण है, लेकिन आज के यंग जेनरेशन को अपनी लाइफस्टाइल को लेकर पूरी तरह से सतर्क रहना चाहिए क्योंकि ऐसे कई पर्यावरणीय कारक हैं जो पार्किंसंस जैसी बीमारी पैदा कर सकते हैं. फरीदाबाद सेक्टर 8 सर्वोदय हॉस्पिटल की न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी और एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. रितु झा के मुताबिक ऐसा बिल्कुल नहीं है कि खराब पर्यावरण के कारण सभी लोगों को पार्किंसंस की बीमारी हो जाएगी, कुछ लोगों को यह प्रभावित कर भी सकती है. वहीं पर्यावरण इसके जोखिम को भी कम करती है.
पेस्टीसाइड्स और हार्बीसाइड्स के कारण भी हो सकता है पार्किंसंस
डॉ. रितु झा के मुताबिक कुछ पेस्टीसाइड्स और हार्बीसाइड्स के संपर्क में आने से भी पार्किंसंस की बीमारी होने का खतरा बढ़ता है. ये कैमिकल्स सीधा दिमाग के न्यूरॉन्स जो डोपामाइन प्रोड्यूस करती है उसे नुकसान पहुंचाते हैं.डोपामाइन ही हमारी फीजिकल एक्टीविटीज और पूरी बॉडी की मूवमेंट को कंट्रोल करने का काम करती है. जो लोग गांव में रहते हैं उन्हें पार्किंसंस होने का खतरा और अधिक ज्यादा है क्योंकि गांव में ज्यादातर लोग कृषि से जुड़े होते हैं और वहां पर पेस्टीसाइड्ट का खेतों में ज्यादा यूज होता है.
सूखी सफाई और फैक्टरी में होने वाली गंदगी से भी हो सकती है पार्किंसंस
डॉक्टर आगे कहती हैं, सीसा और पारा, पार्किंसंस रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं. ये धीरे-धीरे दिमाग में जमा हो सकते हैं और ऑक्सीडेटिव टेंशन पैदा कर सकते हैं, जो न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आमतौर पर सूखी सफाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग किए जाने वाले कुछ सॉल्वैंट्स जैसे ट्राइक्लोरोएथिलीन और पर्क्लोरोइथाइलीन भी इंसान के न्यूरोन को नुकसान पहुंचाती है और इससे पार्किंसंस की बीमारी होने का खतरा बढ़ता है.
प्रदूषित वातारण के कारण भी हो सकती है गंभीर बीमारी
खराब और प्रदूषण वाले पर्यावरण के कारण दिमाग या ब्रेन में सूजन हो जाता है. जिसके कारण बॉडी ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पैदा करता है. प्रदूषित पर्यावरण के कारण न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचतता है. अगर दिमाग में गंभीर चोट लग जाए तब भी पार्किंसंस की बीमारी होने का खतरा रहता है.
पार्किंसंस के लक्षण:-
हाथ-पैर में कंपकंपी
मांसपेशियों में अकड़न
उठने, बोलने और चलने -फिरने में दिक्कत होना
नींद में कमी होना
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
ये भी पढ़ें: कुछ खाने से पहले ढूंढते हैं Tomato Ketchup तो हो जाइए सावधान..कहीं स्वाद बढ़ाने के चक्कर में पड़ न जाएं बीमार
Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )