एक शोध में सामने आया है कि जिन बच्चों का बचपन दर्दनाक और चिंता-तनाव से भरा होता है, वे बच्चे बड़े होकर गुस्सैल बन जाते हैं. बचपन में बच्चों को लगने वाला आघात जितना ज्यादा होता है, वो वयस्क होकर उतना ही ज्यादा गुस्सा करने लगते हैं. बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करना न सिर्फ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, बल्कि उनके सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करता है. इतना ही नहीं, ऐसे लोगों के डिप्रेशन और टेंशन का इलाज भी मुश्किल हो जाता है. यह अध्ययन पेरिस में मनश्चिकित्सा की यूरोपीय कांग्रेस में पेश किया गया है.


पहले के शोधों के मुताबिक, टेंशन और डिप्रेशन से पीड़ित 40 प्रतिशत से ज्यादा मरीज गुस्से से पीड़ित पाए गए. नीदरलैंड की डिप्रेशन और टेंशन पर चल रही स्टडी ने इस अध्ययन के लिए डेटा प्रदान किया है. 2004 की शुरुआत में इस शोध में 18 और 65 साल की उम्र के प्रतिभागियों को शामिल किया गया था और उनसे उनके बचपन के बारे में सवाल किया गया. अध्ययन के अंत तक 2276 लोगों ने हिस्सा लिया था. सालों के अध्ययन में यह पता लगाया गया कि क्या उनके बचपन के आघात का कोई इतिहास रहा है या नहीं, जैसे- माता-पिता की मृत्यु, माता-पिता का तलाक आदि. 


बचपन का आघात बनता है क्रोध का कारण!


उन्होंने प्रतिभागियों से शारीरिक, भावनात्मक और यौन शोषण के बारे में भी पूछा. प्रतिभागियों की डिप्रेशन और चिंता से संबंधित अलग-अलग तरह के मनोरोग लक्षणों की जांच भी की गई, जिसमें उनकी क्रोध की वजह सामने आई. लीड रिसर्चर निएनके डी ब्लेस (लीडेन यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स) ने कहा कि क्रोध पर बहुत कम शोध हुएं हैं. इस नए अध्ययन ने बहुत सारे वैज्ञानिक डेटा को सामने लाने में मदद की है. 


शोध में पाया गया कि बचपन में भावनात्मक उपेक्षा, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार से पीड़ित लोगों में गुस्से की समस्या होने की संभावना 1.3 से 2 गुना ज्यादा थी. रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि बचपन का अनुभव जितना ज्यादा दर्दनाक होता है, वयस्क होने पर गुस्सा उतना ही बढ़ता चला जाता है. इस बारे में निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि बचपन का आघात ही क्रोध का कारण बनता है, लेकिन यह जरूर है कि इन दोनों में एक लिंक है.


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