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बच्चे पैदा करने की ऐसी तकनीक जिसमें 'डेडबॉडी' की जरूरत पड़ेगी

Brain Dead Women Surrogacy: सोचकर देखिए अगर कोई प्रोफेसर ये आइडिया दे कि 'ब्रेन डेड' महिलाओं के जरिए बच्चे पैदा करेंगे तो आपको कैसा लगेगा? पूरी रिपोर्ट पढ़ें

इनफर्टिलिटी को लेकर जानी-मानी रिसर्च कंपनी, अलायड मार्केट रिसर्च (Allied Market Research) की एक रिपोर्ट है. इसमें लिखा है कि हम सोच भी नहीं सकते कि कितनी तेजी से सरोगेसी और IVF का बाजार बढ़ने वाला है. इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि लाइफस्टाइल की वजह से ज्यादातर लोग बच्चे पैदा कर पाने की स्थिति में नहीं रहेंगे. बढ़ती उम्र में शादियां और बिगड़ते खानपान की वजह से इनफर्टिलिटी तेजी से बढ़ रही है. नतीजन मेडिकल साइंस के प्रोफेसर और साइंटिस्ट्स नई-नई रिसर्च में लगे हैं, ताकि बच्चे पैदा किए जा सकें. अब एक नई थ्योरी ये है कि ब्रेन डेड यानि एक तरह से 'डेड बॉडी' के जरिए बच्चे पैदा किए जाएंगे. हालांकि अभी इसकी शुरुआत होने में सालों लग सकते हैं.   

पूरी थ्योरी क्या है और किसने दी है?

इस पूरी थ्योरी को कहा जाएगा होल बॉडी जेस्टेशनल डोनेशन (Whole Body Gestational Donation). ये अपने गर्भ को डोनेट करने का बिल्कुल वैसा ही तरीका होगा... जैसे लोग अपने ऑर्गन डोनेट करते हैं. इस प्रोसेस में कोई भी महिला अपने जीवित रहते हुए ये कंसेंट साइन कर सकती है... कि किसी भी स्थिति में अगर वो ब्रेन डेड हो जाती है, तो उसके गर्भाशय का इस्तेमाल बच्चे पैदा करने के लिए किया जा सकता है. यानि वह ब्रेन डेड होने के बाद भी नि:संतान दंपतियों के लिए कुछ अच्छा कर सकेगी. 

किसकी थ्योरी है ये?

यूनिवर्सिटी ऑफ ओस्लो की डायरेक्टर ऑफ फिलोसोफी की प्रोफेसर एन्ना समेडोर (Anna Smajdor) ने ये थ्योरी दी है कि 'वो मां-बाप जो बच्चा पैदा करना चाहते हैं लेकिन किसी भी कारण से बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में वह बच्चों का सपना पूरा करने के लिए ब्रेन डेड करार दी गई फीमेल बॉडी को हायर कर सकेंगे.' एन्ना ने इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन से इन्होंने मेडिकल एथिक्स में PhD की डिग्री ली है. कई प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में एन्ना के 18 रिसर्च पेपर पब्लिश हो चुके हैं. प्रेगनेंसी से जुड़ा उनका ये ताजा रिसर्च पेपर थियोरिटकल मेडिसिन एंड बायोटिक्स (Theoretical Medicine and Bioethics) जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें 12 पेज का रिसर्च पेपर है, जिसमें हर एक सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है. 

जेस्टेशनल प्रोसेस  (Gestational Process) काम कैसे करेगा?

1. पहले एक महिला ये तय करेगी कि वह जेस्टेशनल प्रोसेस  (Gestational Process) के लिए अपनी बॉडी डोनेट करने के लिए तैयार है. अगर वह ब्रेन डेड हो जाती है या कोमा में चली जाती है तो वह इस प्रोसेस के लिए तैयार है.
2. इसके बाद उसे एक कंसेंट (लीगल दस्तावेज) साइन करना होगा.
3. किसी एक्सीडेंट की वजह से अगर अचानक कोमा में जाती है, तो भी वह जेस्टेशनल प्रोसेस के लिए तैयार होगी.
4. इसके बाद जो मां-बाप जो कंसीव नहीं कर पा रहे उस महिला के शरीर को हायर कर लेंगे, अपना खुद का बच्चा पैदा करने के लिए
5. डॉक्टर इस बात की जांच करेंगे कि महिला का कंसेंट पूरी तरह लीगल है कि नहीं.
6. डॉक्टर इस बात की भी तस्दीक करेंगे कि महिला पूरी तरह एक बच्चे को संभाल सकने की स्थिति में है या नहीं.
7. इसके बाद इन वीट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के जरिए मेल के स्पर्म और महिला के एग को फर्टिलाइज किया जाएगा.
8. इसके बाद कोख में इन्क्यूबेट करने के लिए एंब्रियो (भ्रूण) तैयार किया जाएगा.
9. फिर ब्रेन डेड महिला के गर्भ में बच्चे के भ्रूण को इन्क्यूबेट (प्रत्यारोपित) किया जाएगा.
10. इंप्लाटेशन के बाद महिला को हार्मोनल थैरेपी दी जाएगी, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे का पालन ठीक तरह से हो जाएगा.

भ्रूण इंप्लांट के बाद बनेंगी दो स्थितियां

1. वेजिटेटिव स्टेट
- इसमें पेशेंट को पूरी तरह नहीं अनकॉन्सस होगा. यानी वो कोमा में तो होगा लेकिन उसे अपनी स्लीपिंग साइकिल (सोने-जागने का समय) महसूस होगा. आंखों की पुतलियां थोड़ा बहुत चल सकती हैं. चेहरे पर एक्सप्रेशन यानी भाव भी आ सकते हैं. ऐसे कोमा वाले पेशेंट के ठीक होने की संभावना होती है. ऐसे पेशेंट के लिए उम्मीद की जाती है कि वह एक न एक दिन ठीक होकर वापस नॉर्मल जिंदगी शुरू कर सकते हैं.

2. ब्रेन डेड
- इस स्थित में कोई भी मरीज डीप कोमा में चला जाता है. ऐसे पेशेंट को ये भी पता नहीं होता है कि वो कहां हैं, किस हाल में हैं. किसी ट्रॉमा या इंजरी के कारण ऐसे पेशेंट का दिमागी कनेक्शन शरीर से पूरी तरह टूट जाता है. आमतौर पर ऐसे पेशेंट को ब्रेन डेड डिक्लियर कर दिया जाता है. ऐसे पेशेंट खुद से सांस नहीं ले पाते वो सिर्फ वेंटिलेटर के सहारे ही जिंदा रहते हैं. ऐसे मरीजों को एक डेड बॉडी के तौर पर भी देखा जाता है. अब सवाल उठता है कि क्या ऐसी 'डेड बॉडी' में किसी बच्चे को इनक्यूबेट (प्रत्यारोपित) करना कितनी सही है, जो किसी भी वक्त मर सकता है. ऐसी कंडीशन में वो न सिर्फ उसकी जान जाएगी, बल्कि वो न चाहते हुए भी एक और मौत का जिम्मेदार हो सकता है. इस सवाल का जवाब देते हुए प्रोफेसर एन्ना समेडोर कहती हैं कि...ऑर्गन डोनेशन भी एक इसी तरह की प्रक्रिया है. मौत के बाद अंग डोनेट करने पर एक डॉक्टर जिसके शरीर में भी उन्हें प्रत्यारोपित करता है, उसकी कोशिश होती है कि वह अपना काम ठीक से करे और प्रत्यारोपण सफल हो लेकिन इसका बावजूद फेल्योर की गुंजाइश रह ही जाती है. इसके साथ ही वेटिंलेटर से अटैच रहने पर इस बात की संभावना कुछ हद तक कम किया जा सकता है. प्रोफेसर का मानना है कि लाइफ सपोर्ट के जरिए 'ब्रेन डेड' पेशेंट को जीवित रखने की कोशिश तब तक की जानी चाहिए जब तक कि बच्चा न हो जाए.  

दुनियाभर में बढ़ रही इनफर्टिलिटी

अलायड मार्केट रिसर्च (Allied Market Research) के मुताबिक दुनियाभर में इनफर्टिलिटी तेजी से बढ़ रही है. रिसर्च कहती है कि 2021 में फर्टिलिटी सर्विस का मार्केट अगले 10 साल में तीन गुना हो जाएगा. 2021 में फर्टिलिटी सर्विस का मार्केट 21.13 बिलियन डॉलर है, जो 2031 90.79 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. इसके लिए हमारी अनहेल्दी लाइफस्टाइल जिम्मेदार होगा. शराब, स्मोकिंग, घटती फिजिकल एक्टिवटी इसकी जिम्मेदार होंगी. इसकी वजह से अडॉप्शन IVF कराने वालों की तादाद तेजी से बढ़ेगी. 

ये भी पढ़ें: क्या आप भी सुबह खाली पेट चाय पीते हैं, तो फिर समझ लीजिए आप अपना क्या-क्या नुकसान कर रहे हैं

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