प्रेगनेंसी में कोरोना संक्रमण Pre-eclampsia होने का बढ़ाता है काफी जोखिम, रिसर्च
शोधकर्ताओं ने इस हवाले से और रिसर्च की जरूरत बताई है ताकि कोविड-19 संक्रमण और प्री-एक्लेम्पसिया के बीच तंत्र को निर्धारित किया जा सके.
प्रेगनेंसी में कोरोना वायरस से संक्रमित होनेवाली महिलाओं को प्री-एक्लेम्पसिया होने का काफी अधिक खतरा रहता है. ये खुलासा वाएने स्टेट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन की हालिया रिसर्च में हुआ है. प्री-एक्लेम्पसिया को मेडिकल की भाषा में हाई ब्लड प्रेशर कहा जाता है और प्रेगनेंसी की पेचीदगी होती है. ये आम तौर पर प्रेगनेंसी का आधा चरण पार कर लेने या फिर डिलीवरी के ठीक बाद होता है. प्रेगनेंसी के 20वें सप्ताह में इसके विकसित होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है और इस दौरान ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाता है.
प्रेगनेंसी में कोरोना संक्रमण से बढ़ता है प्री-एक्लेम्पसिया का जोखिम
प्री-एक्लेम्पसिया के वार्निंग संकेत में हाई ब्लड प्रेशर के अलावा सिर दर्द, चेहरे और हाथों पर सूजन, धुंधलापन, सीने में जलन और सांस लेने में दुश्वारी शामिल है. हालांकि ये स्थिति कुछ घंटों में जाहिर हो सकती, लेकिन कुछ महिलाओं को बहुत कम या नहीं के बराबर लक्षण होते हैं. प्री-एक्लेम्पसिया फाउंडेशन का अनुमान है कि उसके नतीजे में हर साल 76 हजार महिलाओं और 5 लाख से अधिक शिशुओं की मौत होती है. ये स्थिति लिवर, किडनी और दिमाग को प्रभावित कर सकती है.
शोधकर्ताओं ने 28 रिसर्च की समीक्षा कर नतीजा प्रकाशित किया. रिसर्च में 7 लाख 90 हजार से ज्यादा प्रेगनेंट महिलाओं को शामिल किया गया था, उनमें से 15 हजार 524 में कोरोना संक्रमण की पहचान हुई. शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रेगनेंसी के दौरान कोरोना का संक्रमण प्री-एक्लेम्पसिया की स्पष्ट बढ़ोतरी से जुड़ा हुआ पाया गया. रिसर्च के मुताबिक कोविड से संक्रमित प्रेगनेंट महिलाएं चाहे उनमें लक्षण जाहिर हों या न हों मगर उनमें प्री-एक्लेम्पसिया का जोखिम काफी हद तक बढ़ जाता है. लेकिन, कोविड के लक्षणों का सामना करनेवाली प्रेगनेंट महिलाओं को प्री-एक्लेम्पसिया का जोखिम बिना लक्षणों वाली महिलाओं के मुकाबले ज्यादा होता है.
विशेषज्ञों ने बताया संबंध को समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत
शोधकर्ताओं ने इस हवाले से और रिसर्च की जरूरत बताई है ताकि कोविड-19 संक्रमण और प्री-एक्लेम्पसिया के बीच तंत्र को निर्धारित किया जा सके. उन्होंने कहा कि हेल्थ केयर पेशेवरों को संबंध से वाकिफ होना चाहिए और संक्रमित होनेवाली प्रेगनेंट महिलाओं की मॉनिटरिंग की जाए ताकि प्री-एक्लेम्पसिया का जल्दी पता लगाया जा सके. प्री-एक्लेम्पसिया पीड़ित मां के बच्चे इस स्थिति से प्रभावित हो सकते हैं. प्रेगनेंसी में जितनी जल्दी बीमारी शुरू होगी, नतीजे उतने ही ज्यादा बच्चे और मां के लिए खराब हों सकते हैं. प्री-एक्लेम्पसिया से पीड़ित महिलाएं अक्सर प्रभाव को महसूस नहीं करतीं जब तक कि ये स्थिति गंभीर और जानलेवा न बन जाए.
इलाज न कराने पर स्थिति एक्लेम्पसिया में विकसित हो सकती है जो मां और बच्चे दोनों को प्रभावित करती है. माना जाता है कि प्लेसेंटा के ठीक ढंग से काम नहीं करने पर प्री-एक्लेमप्सिया होता है. प्री-एक्लेमप्सिया प्लेसेंटा से रक्त के प्रवाह को कम कर देता है. इसका मतलब हुआ आपके गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व का नहीं मिलना, जिसका नतीजा शारीरिक और मानसिक अपंगता, बच्चे का धीमा विकास होता है और गंभीर मामलों में बच्चा मरा हुआ पैदा हो सकता है.
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