एक औरत की जिंदगी में मां बनने से ज्यादा खुशी कोई और नहीं हो सकती है. कहा जाता है कि औरत को भगवान का वरदान है कि वह एक जीव को इस पृथ्वी पर लाने की क्षमता रखती है. ऐसी स्थिति में मां का भी पूरा कर्तव्य बनता है कि वह अपनी बच्चे को हेल्दी वातावरण में जन्म दे.


आजकल की खानपान और खराब लाइफस्टाइल के कारण शरीर में कई सारी समस्याएं पैदा होती है. इस स्थिति में जरूरी है कि समय-समय पर चेक करवाते रहें कि शरीर में किसी तरह की कोई बीमारी तो नहीं है. अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है तो उन्हें बच्चे के जन्म से पहले इन टेस्ट को जरूर करवाना चाहिए ताकि पता चले कि बच्चा गर्भ के अंदर स्वस्थ्य है नहीं?


जन्म से पहले प्रीनटल टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है, जानें क्यों


जब बच्चा गर्भ में रहता है तो उसके जन्म से पहले प्रीनटल टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है. साथ ही जानें यह कितना महत्वपूर्ण है. दरअसल, ये टेस्ट बच्चे के शरीर में कोई दिक्कत तो नहीं है. उसके ऑर्गन ठीक से काम कर रही है. उसे लेकर टेस्ट किए जाते हैं. कोई जेनेटिक बीमारी तो नहीं इसे लेकर यह टेस्ट किया जाता है. बच्चे को जेनेटिक कोई गंभीर बीमारी तो नहीं ऐसी स्थिति में यह टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है. 


बर्थ डिफेक्ट: बच्चे में किसी भी तरह की गंभीर बीमारी तो नहीं है या उसके बॉडी पार्ट या ऑर्गन ठीक से काम तो कर रहे हैं इसलिए यह फर्स्ट ट्राइमेस्टर के दौरान यह टेस्ट बेहद जरूरी है. 


स्क्रीनिंग टेस्ट और डायग्नोस्टिक टेस्ट क्या हैं? 


स्क्रीनिंग टेस्ट यह देखने के लिए जांच करते हैं कि आपके बच्चे को कोई स्वास्थ्य समस्या होने की अधिक संभावना है या नहीं. लेकिन वे आपको यह निश्चित रूप से नहीं बताते हैं कि आपके बच्चे को कोई समस्या है या नहीं.जब आप स्क्रीनिंग टेस्ट करवाते हैं तो आपको या आपके बच्चे को कोई जोखिम नहीं होती है.


 डायग्नोस्टिक टेस्ट आपको यह निश्चित रूप से बताते हैं कि आपके बच्चे को कोई स्वास्थ्य समस्या है या नहीं. अगर स्क्रीनिंग टेस्ट से पता चलता है कि आपके बच्चे को कोई स्वास्थ्य समस्या होने का उच्च जोखिम है, तो आपका प्रदाता परिणामों की पुष्टि करने के लिए डायग्नोस्टिक टेस्ट की सलाह दे सकता है.


 कुछ डायग्नोस्टिक टेस्ट में आपके बच्चे के लिए कुछ जोखिम हो सकते हैं, जैसे गर्भपात. गर्भपात तब होता है जब गर्भावस्था के 20 सप्ताह से पहले गर्भ में बच्चा मर जाता है. स्क्रीनिंग टेस्ट के परिणाम आपको यह तय करने में मदद कर सकते हैं कि आपको डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाना है या नहीं. हो सकता है कि आप यह जानना चाहें या न चाहें कि आपके बच्चे को कोई स्वास्थ्य समस्या है या नहीं. अगर आप डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाने का फैसला करते हैं, तो आप अपने बच्चे की स्थिति और जन्म के बाद अपने बच्चे की देखभाल करने के तरीके के बारे में अधिक जान सकते हैं. आप ऐसे अस्पताल में जन्म देने की योजना भी बना सकते हैं जो आपके बच्चे को विशेष चिकित्सा देखभाल दे सके.


ग्लूकोज स्क्रीनिंग: यह स्क्रीनिंग टेस्ट यह जांचता है कि गर्भवती महिला को मधुमेह तो नहीं है. यह एक प्रकार का मधुमेह टेस्ट है जो कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान होता है. आप यह परीक्षण गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह में करवाती हैं.


अल्फा-फ़ेटोप्रोटीन (एएफपी), एस्ट्रिऑल, ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोस्ट्रोपिन (एचसीजी) और इनहिबिन ए: यह परीक्षण गर्भावस्था के 15 और 22 सप्ताह में किया जाता है.


 अल्ट्रासाउंड: गर्भावस्था के 18 से 22 सप्ताह के बीच अल्ट्रासाउंड किया जाता है. अल्ट्रासाउंड आपके बच्चे की वृद्धि और विकास की जांच करेगा. यह बच्चे की बर्थ डिफेक्ट की जांच करेगा.


एमनियोसेंटेसिस: एमनियोसेंटेसिस के दौरान, बच्चे के चारों ओर से एमनियोटिक लिक्विड का एक नमूना लिया जाता है. यह देखने के लिए बच्चे में जन्म दोष या आनुवंशिक स्थिति ठीक है नहीं. परीक्षण आमतौर पर गर्भावस्था के 15 से 20 सप्ताह में किया जाता है. अगर आप 35 के बाद मां बन रही है तो यह टेस्ट जरूर करवाना चाहिए. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 


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