नई दिल्ली: आपने आलूओं का सेवन तो खूब किया होगा लेकिन क्या आपने पर्पल आलू खाएं हैं. जी हां, आज हम आपको बैंगनी आलू खाने के फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं.


क्या कहती है रिसर्च-
हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, बैंगनी आलू सहित रंगीन पौधों में बायोगैक्टिक यौगिकों होते हैं. जैसे कि एंथोकायनिन और फिनोलिक एसिड जो कि कैंसर के ट्रीटमेंट में मदद करते हैं.


शोधकर्ताओं का कहना है कि इन यौगिकों का एक मोलेक्युलर लेवल पर काम करना कैंसर रोकथाम की दिशा में पहला कदम हो सकता है.


क्या कहते हैं शोधकर्ता-
कोलन कैंसर के बारे में अमेरिका के पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर जयराम के पी वनामाले का कहना है कि यह बीमारी को बढ़ावा दे सकता है लेकिन यह पुरानी बीमारियों को रोकने में भी मदद कर सकता है.


कैसे की गई रिसर्च-
इस पर एक स्टडी की गई जिसमे सूअरों को उच्च कैलोरी बैंगनी-फ्लेस्ड आलू परोसा गया था. जिसके बाद ये पता चला कि इनमे अन्य सुअरों की तुलना में कम कोलोनिक म्यूकोसॉल इंटरलेकुन -6 (आईएल -6) पाया गया था.


क्या है आईएनएल –
वनामाले का कहना है कि आईएनएल -6 एक प्रोटीन है जो सूजन को कम करता है  और आईएल -6 का ऊंचा स्तर प्रोटीन से संबंधित है.जैसे की - 67, जो कि कैंसर सेल्स के प्रसार और वृद्धि से जुड़ा हुआ है.


रिसर्च के नतीजे-
जर्नल ऑफ़ पोषण बायोकैमिस्ट्री में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि जैविक पोषक तत्वों वाले सभी खाद्य पदार्थ खाने से मनुष्य को बड़ी मात्रा में प्रोटीन इसके अलावा न्यूटेरियंट जैसे विटामिन, कैरोटीनॉइड और फ्लेवोनोइड्स जैसे प्रभावी पदार्थ मिल सकते हैं.


वानमाले ने कहा कि इन निष्कर्षों ने हाल ही में किए गए शोध को पक्का किया है. नॉन-वेजिटेरियन फूड के बजाय वेजिटेरियन फूड खाने से कोलन कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.


रिसर्च में ये भी पाया गया कि कई वेस्टर्न देशों में अधिक मांस और कम फलों और सब्जियों का सेवन करने से कोलन कैंसर से बहुत मौतें होती हैं.


इसलिए बैंगनी आलू है ज्यादा फायदेमंद-
शोधकर्ताओं ने इस स्टडी में बैंगनी आलू का इस्तेमाल किया था. वानमाले का कहना है कि फल और सब्जियों का सेवन करने से इसी तरह के रिजल्ट कम देखने को मिलते हैं. वनामाले का कहना है कि व्हाइट आलू में कुछ सहायक यौगिक हो सकते हैं. लेकिन बैंगनी आलू में एंटी-ऑक्सीडेंट यौगिकों की मात्रा अधिक होती है.


राधाकृष्णन और पैन स्टेट के लावानिनि रेड्डीवरी सहित शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे एक फायदा ये भी है कि इससे कैंसर उपचार के साथ-साथ कृषि को लाभ होगा. इससे दुनिया भर के छोटे किसानों को मदद मिलेगी.


दवाईयों को बढ़ावा देने के बजाय हम फलों और सब्जियों को बढ़ावा दे सकते हैं जो पुरानी बीमारी की बढ़ती समस्या का मुकाबला करने में अधिक प्रभाव दिखाएगी.


सूअरों पर हुआ था अध्ययन-
वनामाले का कहना है कि सूअर का मॉडल इसलिए इस्तेमाल किया गया क्योंकि सूअर का डायजेस्टिव सिस्टम चूहों के डायजेस्टिव सिस्टम की तुलना में इंसान के डायिजेस्टिव सिस्टम से काफी मिलता-जुलता है.


नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.