Mental Disorder: हर बार रिपोर्ट नेगेटिव, फिर भी जांच करा रहे, कहीं इस बीमारी की गिरफ्त में तो नहीं आ गए?
बार-बार एक ही तरह के विचारों का आना मेंटल डिसऑर्डर है. इस बीमारी का समय रहते इलाज कराना जरूरी है.
Mental Sickness: कुंडी नहीं लगी है एक बार देख लिया, कुंडी लगा दी फिर भी कंफ्यूज हैं, दोबारा देखने के लिए चले गए. हेल्थ रिपोर्ट निगेटिव और यह मान लेना कि बीमारी है, ऐसे ही कई बार एक्टिविटीज का दोहराव एक मेंटल डिसऑर्डर है. टाइम पर यदि इस बीमारी का इलाज न कराया जाए तो यह सीरियस हो सकता है. इंडिया में बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि बार-बार एक ही तरह के विचारों का आना मेंटल डिसऑर्डर है. इस बीमारी का समय रहते इलाज कराना जरूरी है. बीमारी दिमाग से जुड़ी हुई है इसलिए इसका ट्रीटमेंट थोड़ा लंबा है.
Obsessive Compulsive Disorder को समझिए
जिस व्यक्ति को ओसीडी (OCD- obsessive compulsive disorder) यानि ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर की समस्या होती है. वह अपने दिमाग से बार बार आ रहे विचारों को आसानी से नहीं हटा पाते हैं. उसे लगता है सफाई ढंग से नहीं हुई है, हाथ सही ढंग से नहीं धुले हैं. जांच में हेल्थ रिपोर्ट निगेटिव और यह मान लेना कि बीमारी है, रिपोर्ट ही सही नहीं है. बार बार जांच कराते रहना. जब किसी व्यक्ति को यह समस्या होती है तो इन लोगों में एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लक्षण भी नजर आ सकते हैं. ओसीडी की समस्या होने पर कई और symptom नजर आ सकते हैं.
ऐसे करें खुद से डील
1. यह मान लें कि उन्हें ओसीडी की बीमारी है. दिमाग को भी यह बताने की कोशिश करें कि बेवजह और खराब ख्याल आ रहे हैं.
2. 30 मिनट तक किसी एकांत स्थान पर रहकर योग करें. गहरी सांस लें और छोड़े. इससे ब्रेन में ऑक्सीजन का लेवल बढेगा. साथ ही बार बार आने वाले विचारों को बेकार बताते रहें.
3. यहां ओसीडी के ख्यालों को तरजीह न देना है. खुद से यही कहना है कि ये इम्पोर्टेंट नहीं है. यह सिर्फ मेरा बेवकूफाना ऑब्सेशन हैं। इसका कोई मतलब नहीं. इस पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं. याद रखें, आप इन ख्यालों को आने से नहीं रोक सकते, लेकिन आपको इस पर ध्यान देने की जरूरत भी नहीं होती.
हर 100 में 3 होते शिकार
नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ इंडिया के मुताबिक, 100 लोगों में से 2 से 3 लोगों को जीवन भर की ओसीडी समस्या देखने को मिलती है. यह बीमारी पुरुष और महिला दोनों को बराबर प्रभावित करती है. इस बीमारी की शुरुआत आमतौर पर 20 साल की उम्र में हो जाती है. हालांकि, यह दो साल के बच्चे से लेकर किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है.
सेरोटोनिन हार्मोन की भी बढ़ी भूमिका
डॉक्टर्स का कहना है ओसीडी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती. इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जाए तभी इस बढ़ने से रोका जा सकता है. जब शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन की कमी हो जाती है तब यह समस्या हो सकती है. डॉक्टर सेरोटोनिन हार्मोन को बढ़ाने की दवाई दे सकते हैं. ओसीडी के ट्रीटमेंट में बिहेवियर थेरेपी और टॉक थेरेपी भी कारागर है. कुछ रोगियों को एंटीडिप्रेसेंट दवाई भी दी जाती है. यदि लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए.
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