नेचर मेडिसिन मैगजीन में सोमवार को पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक उम्र बढ़ने के साथ डिमेंशिया का खतरा दोगुना बढ़ जाता है. रिसर्च में कहा गया है कि लगभग 14% पुरुष और 23% महिलाएं अपने पूरी जिंदगी में कभी न कभी डिमेंशिया का शिकार हो जाते हैं. डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. जिसके बारे में रिसर्चर ने अनुमान लगाया है कि 2060 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी. पिछली पीढ़ियों की तुलना में लोगों के लंबे समय तक जीने का परिणाम है. बूढ़ापे में कई सारी बीमारियों और इंफेक्शन के कारण इसका असर दिमाग पर पड़ता है. और यही कारण है कि डिमेंशिया के शिकार हो जाते हैं.
60 साल से पहले टाइप 2 डायबिटीज के असर का खुलासा
पेरिस यूनिवर्सिटी के रिसर्च में पता चला कि अनियंत्रित ग्लूकोज शुगर लेवल और दिमाग में इंसुलिन डिमेंशिया के विकास की दिशा में योगदान कर सकता है. पहले से ही डायबिटीज और वैस्कुलर डिमेंशिया, बीमारी की एक आम किस्म के बीच ज्ञात संबंध है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती है और ऑक्सीजन के प्रवाह को रोकती है. फ्रेंच वैज्ञानिकों ने पाया कि 70 साल की उम्र में डिमेंशिया दोगुना हो जाता है अगर किसी में 10 साल पहले डायबिटीज की पहचान हुई हो.
उन्होंने बताया कि टाइप 2 डायबिटीज और डिमेंशिया के बीच चिह्नित संबंध का सटीक तंत्र स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा रिसर्च डायबिटीज और अल्जाइमर की बीमारी का नमूना के बीच निरंतर संबंध हमेशा नहीं दिखाता है. वैज्ञानिकों ने संबंध का एक संभावित वजह सुझाया है कि दिमाग तक कम इंसुलिन पहुंचता है. इसका मतलब हुआ कि ऊर्जा के लिए ग्लूकोज शुगर का इस्तेमाल करने में कम सक्षम है क्योंकि डायबिटीज के मरीज हार्मोन की पर्याप्त मात्रा नहीं पैदा करते हैं. दिमाग ग्लूकोज का इस्तेमाल अपने सामान्य तंत्र के काम को ऊर्जा देने और स्वस्थ कोशिकाओं को बहाल करने के लिए करता है, और उसकी कमी से अंग को नुकसान पहुंच सकता है.
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70 साल की उम्र में डिमेंशिया का होता है दोगुना खतरा-रिसर्च
शोधकर्ताओं ने बताया कि हाई ब्लड शुगर होने पर दिमाग बहुत ज्यादा ग्लूकोज अवशोषित करता है. बड़ी मात्रा में ग्लूकोज को जहरीला जाना जाता है और ये नसों और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए डायबिटीज के रोगियों का पांव सुन्न हो सकता है. दिमाग की नसों या ब्लड आपूर्ति का नुकसान बढ़ सकता है जिससे डिमेंशिया होने का खतरा रहता है. रिसर्च के नतीजे को जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित किया गया है.
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