हाई ब्लड प्रेशर का ये कारण अब तक नहीं सुना होगा आपने!
नई दिल्लीः क्या आपको पता है हाई ब्लड प्रेशर क्यों होता है? कुछ लोग इसे उम्र का तकाज़ा कहते हैं तो कुछ लोग हैरिडिटरी से जोड़ देते हैं. इसके अलावा मोटापा, अधिक ड्रिंक और नमक की शरीर में अधिक मात्रा को भी हाई ब्लड प्रेशर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है.
कुछ लोग फिजिकल एक्टिविटी ना करने या किसी और बीमारी की वजह से भी हाई ब्लड प्रेशर होने की बात करते हैं. लेकिन क्या अभी तक आप इसके सही कारणों को जान पाएं हैं? जी हां, आज हम आपको बता रहे हैं उच्च रक्तचाप के होने का असल कारण क्या है.
हार्ट अटैक का कारण हाई बीपी- हाल ही में वैज्ञानिकों ने हाई ब्लड प्रेशर के कारणों को जाना है. इससे अब इस डिस्ऑर्डर का इलाज करना भी आसान हो गया है. हाई ब्लड प्रेशर को हाइपरटेंशन के नाम से भी जाना जाता है. अगर हाइपरटेंशन का सही समय पर इलाज ना करवाया जाए तो ये हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण बन सकता है.
हाई ब्लड प्रेशर का कारण- एक रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया है कि हाइपरटेंशन मरीजों में एक खास तरह का हार्मोंन बहुत ज्यादा पाया जाता है जिसे एल्डोस्टेरोन के नाम से जानते हैं. इस हार्मोन के बहुत ज्यादा बनने के कारण ही लोग हाई ब्लड प्रेशर के शिकार होते हैं. इस कंडीशन को कॉन (Conn) सिंड्रोम या एल्डोस्ट्रोनिज्म के नाम से जाना जाता है.
कॉनशिंग सिंड्रोम- ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया कि बहुत से मरीज कॉन सिंड्रोम के शिकार हैं. ये ना सिर्फ एल्डोस्टेरोन के ओवर प्रोडक्शन से ग्रसित हैं बल्कि इनका स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल भी बढ़ा हुआ है.
वैज्ञानिकों ने हाइपरटेंशन के इस कारण को नाम देने की सोची जिसके तहत उन्होंने एल्डोस्टेरोन और कोर्टिसोल के ओवरप्रोडक्शन को कॉनशिंग सिंड्रोम नाम दिया है.
फिलहाल बहुत से कॉन सिंड्रोम मरीज का इलाज ऐसी ड्रग से किया जाता है जो कि सीधेतौर पर एल्डोस्टेरोन के विपरीत इफेक्टिव हैं. हालांकि इसमें कोर्टिसोल की अधिकता का इलाज नहीं हो पाता.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट- बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के एक्सटपर्ट व्हिब अल्टर का कहना है कि हमारी रिसर्च बताती है कि कॉन सिंड्रोम से पीडित मरीजों की एडरनल ग्लैंड्स में बहुत ज्यादा कोर्टिसोल का भी प्रोडक्शन होता है. इसी वजह से कॉन पेशेंट्स के ट्रीटमेंट रिजल्ट पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते.
रिसर्च के नतीजे- पहले आई हुई रिसर्च में पाया गया था कि कॉन पेशेंट्स में टाइप 2 डायबिटीज, ऑस्टियोपोरोसिस और डिप्रेशन भी था. ये सब कुछ कोर्टिसोल के ओवर प्रोडक्शेन के कारण था. इसे कुशिंग सिंड्रोम भी कहा जाता है लेकिन इसमें एल्डोस्टेरोन की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं थी.
रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि पेशेंट को अधिक क्लैरिफिकेशन की जरूरत है कि उसे कॉन सिंड्रोम है या फिर कॉनशिंग सिंड्रोम.
ये स्टडी जर्नल जेसीआई इन्साइट्स में पब्लिश हुई थी.
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