Screentime:  समय के साथ टेक्नोलॉजी बदल रही है और आज ये हमारी जरूरत भी बन गई है. बिना स्मार्टफोन, लैपटॉप और टेबलेट के आज किसी भी व्यक्ति के लिए दिन गुजारना मुश्किल है. पढ़ाई-लिखाई से लेकर बड़े से बड़ा व्यवसाय, सभी इन गैजेट के जरिए हो रहा है. एक तरफ जहां इन गैजेट का बड़ा योगदान हमारी जिंदगी को बेहतर बनाने में है तो दूसरी तरफ, कई नुकसान भी हैं. दरअसल, घंटों लैपटॉप, कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर बिताने के चलते लोगों की आंख देखने की क्षमता खत्म हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2.2 बिलियन से अधिक लोग निकट या दूर दृष्टि दोष से पीड़ित है. लंबे समय तक स्क्रीन टाइम से लोगों को सिर दर्द, धुंधला दिखाई देना, उल्टी आदि की समस्याएं हो रही है.


अमृता अस्पताल, फरीदाबाद में नेत्र विज्ञान विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ अमृता कपूर चतुर्वेदी ने बताया कि जो लोग दिन में 8 घंटे से अधिक समय तक स्क्रीन पर बने रहते हैं उनके आंख का स्ट्रक्चर बदलने लगता है और आईबॉल की लंबाई बढ़ती है जिससे मायोपिया होने का खतरा रहता है. वैश्विक महामारी कोरोना के बाद बच्चों में मायोपिया होने का जोखिम बढ़ गया है. मायोपिया में पास की चीजें साफ दिखाई देती है लेकिन, दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं. डॉ ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि 18 साल की उम्र के बाद बच्चों के आंखों की रोशनी स्थिर हो जाती है.


लेकिन, पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि 20 से 25 साल तक की उम्र तक लोगों को चश्मे लगाने की सलाह दी जा रही है जिससे आंखों की रोशनी स्थिर हो सके. जिन बच्चों को पहले से ही चश्मा लगा हुआ था उनकी आंखें देखने की क्षमता महामारी में ऑनलाइन कक्षाओं के कारण बहुत बढ़ गई है. डॉक्टर ने कहा कि कन्वर्जेन्स की मांसपेशियां, जो आंखों को एक दूसरे के करीब लाती हैं, जब हम एक ही चीज को देर तक देखते हैं तो इससे सिर दर्द, धुंधली दृष्टि और कभी-कभी एकाग्रता कम हो जाती है.


जब लगातार कोई व्यक्ति घंटो स्क्रीन को देखता है तो आंखों के पलक झपकने की दर भी कम हो जाती है. इसके कारण एक व्यक्ति में आंसू फिल्म असामान्यताएं विकसित हो जाती हैं. इससे फिर इनमें दर्द, किरकिरा पन और लालपन आ जाता है.


 कैसे स्वस्थ रखें आंखें


आंखों को स्वस्थ रखने का एकमात्र उपाय है स्क्रीनटाइम को सीमित करना. चतुर्वेदी ने सलाह दी कि अगर किसी को लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठकर काम करना पड़ता है तो वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर आंखों को स्वस्थ रख सकता है या इनका तनाव कम कर सकता है.


सोशल मीडिया सर्फिंग को करें सीमित 


सोशल मीडिया सर्फिंग को लिमिटेड कर दें. ये देखा जाता है कि लोग घंटों ऑफिस में काम करने के बाद सोशल मीडिया पर लंबे समय तक एक्टिव रहते हैं और एकाएक स्क्रोल करने में समय बिताते हैं. इस आदत को भूलें और स्क्रीनटाइम को लिमिटेड करे.


बड़ी स्क्रीन 


अगर आपको स्क्रीन पर घंटों काम करना पड़ता है तो कोशिश करें कि बड़ी स्क्रीन पर काम करें. मोबाइल या लैपटॉप के बजाय डेक्सटॉप का इस्तेमाल करें.  छोटी स्क्रीन पर देखने का मतलब है कि आंखों और स्क्रीन की दूरी कम है, इससे आंखों पर तनाव पड़ता है और फिर आपकी परेशानी बढ़ेगी. आप चाहे तो स्क्रीन पर काम करते वक्त उसका साइज और फोंट बढ़ा सकते हैं जिससे आपको देखने में परेशानी न हो.


20/20/20 मिनट का करें पालन 


डॉक्टर चतुर्वेदी ने कहा कि हर 20 मिनट में 20 सेकेंड के लिए ब्रेक लें. इसके लिए आप अपने मोबाइल या डेक्सटॉप पर एक रिमाइंडर लगा सकते हैं जो आपको बताएं कि 20 मिनट के बाद आपको ब्रेक लेना है. ब्रेक के दौरान आपको स्क्रीन से कम से कम 6 मीटर आधा मिनट के लिए दूर रहना है. अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन 20/20/20 नियम की सिफारिश भी करता है. हर 20 मिनट में स्क्रीन से ब्रेक लें और 20 फीट की दूरी पर मौजूद किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित करें. ऐसा 20 सेकंड के लिए करें जिससे आंखों पर स्क्रीनटाइम का तनाव नहीं पड़ेगा. वही, छोटे बच्चों को हर घंटे कम से कम 10 मिनट के लिए स्क्रीन से दूरी बनानी चाहिए. 


लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप


लंबे समय तक स्क्रीन को देखने से आंखों में रूखापन आ जाता है. इसलिए लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप का इस्तेमाल करें. इसके लिए आप पहले अपने डॉक्टर को संपर्क करें और फिर कोई ड्राप लें.


दवाई नहीं लेनी तो ये करें


अगर आप आंखों की ड्राइनेस के लिए दवाई या ड्रॉप नहीं लेना चाहते तो इसके लिए आप पलक झपकाने की एक्साइज कर सकते हैं. दिन में दो बार 20 से 30 सेकंड के लिए ब्लिंकिंग एक्सरसाइज करें. दरअसल, जब आप स्क्रीन पर घंटों काम कर रहे होते हैं तो पलक झपकाना भूल जाते हैं. इससे फिर आंखे सूखने लगती हैं. 1 से 2 घंटे बाद स्क्रीन से ब्रेक लें और लगातार 10 से 15 बार अपनी आंखें खोलो और बंद करें. 


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