खतरनाक है ये VIRUS.. जो बॉडी में कई सालों तक जिंदा रहता है और बना सकता है अंधा
शिंगल्स को आंखों की एक गंभीर बीमारी के रूप में देखा जाता है. बॉडी में दाद किसी भी हिस्से में हो सकते हैं. लेकिन दाद का आंखों में होना बेहद गंभीर माना जाता है. इसका समय पर इलाज जरूरी है
Shingles In Eye: आंखें बॉडी का सबसे अधिक सेंसटिव पार्ट हैं. जरा सी परेशानी होने पर आंखों में बहुत अधिक तकलीफ होती है. आंखों में होने वाली दाद को शिंगल्स कहा जाता है. यह एक तरह का दाद है. आमतौर पर बॉडी में अन्य जगह दाद हो जाए तो वह भी परेशान कर देता है. लेकिन यदि दाद आंख के आसपास या फिर आंख में हो जाए तो स्थिति गंभीर हो जाती है. डॉक्टरों का कहना है कि आंखों को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही बरतने की जरूरत नहीं है. जानने की कोशिश करते हैं कि आंखों में होने वाले दाद यानि शिंगलस है क्या? और किस तरह आंखों को नुकसान पहुंचा सकता हैं.
बॉडी में दशकों तक जिंदा रह सकता है वायरस
शिंगल्स को मेडिकल भाषा में ब्लिस्टरिंग रेशेज के रूप में देखा जाता है. यह पूरी बॉडी में विकसित हो सकता है. लेकिन कुछ मामलों मेें यह चेहरे या सिर्फ आंखों पर ही देखने को मिलता है. यह बीमारी वैरिकाला-जोस्टर वायरस से होती है. इससे चिकनपॉक्स हो जाता है. चिकनपॉक्स तो एक समय बाद ठीक हो जाता है. लेकिन यह वायरस व्यक्ति के शरीर में दशकों तक रहता है. और बाद में दाद के रूप में उभरकर सामने आ जाता है.
इस नाम से बुलाए जाते हैं ये शिंगल्स
डॉक्टरों का कहना है कि शरीर पर कहीं भी दाद होना बेहद खराब लगता है. लेकिन आंखों के आसपास दाद हो जाए तो स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है. आंखों के आसपास और आंखों में होने वालले दाद को हर्पीज ज़ोस्टर केराटाइटिस और हर्पीज़ ज़ोस्टर ओप्थाल्मिकस कहा जाता है.
इन लक्षणों को जरूर पहचानिए
आंखों में दाद होना, जलन और दर्द होना, आंखों में लालिमा-खुजली का रहना, आंखों में लगातार पानी का आना, आंखों में जलन होना, चेहरा धोने पर भी जलन नहीं जाती है. लोग जलन अधिक होने पर इसे रगड़ने लगते हैं. इससे परेशानी और अधिक बढ़ जाती है. यदि मरीज को केराटाइटिस (आंख के सामने के क्षेत्र में दाद) है, तो इससे कॉर्निया सुन्न हो सकता है जिससे धुंधली दृष्टि हो सकती है. कई बार अंधेपन तक की स्थिति आ सकती है. रोशनी को सहन नहीं कर पाते हैं. वहीं, रेटिना, कार्निया पर भी सूजन आ सकती है.
क्या है इलाज
शिंगल्स का इलाज एंटीवायरल दवाओं से किया जाता है. इन दवाओं से दर्द को राहत मिलती है और फफोले को ठीक किया जाता है. वहीं वायरस के प्रसार को भी इन दवाओें की मदद से रोका जाता है. डॉक्टर स्टेरॉयड दवाओं से भी बीमारी पर काबू पाने की कोशिश करते हैं. पोस्टहेरपेटिक न्यूराल्जिया विकसित होने पर, दर्द की दवा और तंत्रिका दर्द से राहत पाने के लिए एंटीडिप्रेसेंट दिए जाते हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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