Cancer Study: सिगरेट पीने के शौकीन हैं तो स्मॉल सेल लंग कैंसर से जरा संभलकर रहिए
डॉक्टरों का कहना है कि स्मोकिंग बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. कैंसर जैसी बीमारी स्मोकिंग से हो जाती है. अब स्टडी में सामने आया है कि अधिक स्मोकिंग करने वालों को स्मॉल सेल लंग कैंसर होने का खतरा बेहद अधिक है.
Smoking Causes Cancer: स्मोकिंग और कैंसर का सीधा कनेक्शन है. सिगरेट के डिब्बों पर गाइड लाइन के रूप में स्पष्ट लिखा होेता है कि सिगरेट कॉजेज कैंसर यानि सिगरेट से कैंसर हो सकता है. फेफड़ों के अधिकांश कैंसर का कारक भी स्मोकिंग को ही माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि फेफड़ों में कई तरह के कैंसर होते हैं. हाल में फेफड़ों के कैंसर को लेकर देश में स्टडी की गई. स्टडी के नतीजे परेशान करने वाले हैं. स्मोकिंग करने वालों को भी इससे अलर्ट होने की जरूरत है.
अधिक स्मोकिंग करने से कैंसर होने का खतरा अधिक ही होता है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों ने स्टडी की. स्टडी में सामने आया कि स्मोकिंग करने वाले पुरुषों को स्मॉल सेल लंग कैंसर (SCLC) के होने की संभावना बेहद अधिक होती है. स्टडी में सामने आया कि इस तरह के कैंसर में फेफड़े के ऊतकों में घातक कोशिकाएं बनती हैं. यह ब्रोकांई यानि सांस नलियों से शुरू होती है. ये बहुत तेजी से बढ़ते हैं और पूरी बॉडी में फेल जाते हैं. यही स्टेज मेटास्टेटिस कहलाती है.
80 प्रतिशत तक कैंसर होने की रही संभावना
नॉर्थ इंडिया के लोगों पर यह स्टडी की गई. स्टडी में सामने आया कि उत्तर भारत के मरीजों पर स्टडी की गई. इसमें सामने आया कि पूर्व में अधिक स्मोकिंग करने वाले मरीजों में 80 प्रतिशत तक कैंसर होने की संभावना थी. वहीं, 65 प्रतिशत ऐसे लोग पाए गए, जोकि काफी धुम्रपान कर रहे थे. लगभग 20 प्रतिशत मामले धूम्रपान न करने वाले थे. उनमें भी स्मॉल सेल लंग कैंसर का खतरा देखा गया. इंडियन चेस्ट सोसाइटी के एक जर्नल लंग इंडिया में पब्लिश आर्टिकल में सामने आ चुका है कि हवा में 2.5 मिमी पार्टिकुलेट मैटर के लंबे समय तक रहने पर और कोई व्यक्ति लंबे समय तक इन कणों के संपर्क में आता है तो उन्हें भी फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है.
केस घटे, मगर नतीजे गंभीर
एससीएलसी के कुल 361 रोगियों पर 12 सालों से अधिक तक स्टडी की गई. स्टडी में शामिल लोगों की उम्र 46-70 साल थी. स्टडी में सामने आया कि पिछले 10 सालों में स्मॉल सेल लंग कैंसर के केसों में कमी देखने को मिली है. तमाम इलाज की नई तकनीक विकसित होने के बावजूद लोग कैंसर के लक्षणों को समय पर नहीं पहचान पाते हैं. इससे इलाज मिलने में देरी हो जाती है. टीबी रोगियों का इम्यून सिस्टम कमजोर होेता है. उन पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
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