Problem in Milk Digestion: दुनिया में सिर्फ एक ही भोजन ऐसा है, जिसका सेवन हर कोई करता है और हर एक इंसान ने इसका स्वाद चखा है. कोई भी इंसान इस भोजन का सेवन किए बिना जी नहीं सकता और इस भोजन का नाम है 'दूध'. जी हां, दूध यानी ऐसा फूड जिसे पैदा होने के बाद हर व्यक्ति लेता है और हर इंसान के पहले फूड के रूप में दूध की लेने की शुरुआत मां के दूध से होती है.
फिर आखिर ऐसा क्या है कि जिस दूध के साथ हमारे जीवन की शुरुआत होती है, उसी दूध का सेवन करने से कुछ लोग बीमार हो जाते हैं? जैसे उन्हें उल्टी-दस्त की समस्या हो जाती है या फिर पेट में गैस बनने लगती है तो किसी को अपच हो जाता है तो कोई पेट दर्द से परेशान हो जाता है? इन सवालों के जवाब हमें दिए डॉक्टर चरणजीत सिंह ने. ये पिछले 32 साल से मेडिकल फील्ड में कार्यरत हैं और राजस्थान के श्रीगंगानर स्थित श्रीगुरुनानक होम्योपैथी हॉस्पिटल में सीनियर डॉक्टर हैं...
लैक्टोस इंटॉलरेंस क्या है ?
लैक्टोस इंटॉलरेंस का अर्थ होता है कि आपका शरीर लैक्टोस को पचा नहीं पाता है. लैक्टोस एक तरह का शुगर होता है, जो दूध और इससे बने दूसरे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है.
लेक्टोस इंटॉलरेंस की समस्या क्यों होती है?
हमारी छोटी आंत (Small Intestine) में एक डायजेस्टिव एंजाइम बनता है, जिसे लैक्टेस (lactase) कहते हैं. यह लैक्टोस को पाचने का काम करता है और इसे फूड मॉलिक्यूल्स में तोड़ता है ताकि आंत इसका अवोषण कर सके. इसलिए जिन लोगों की आंत में लैक्टेस का सीक्रेशन कम होता है, उन्हें दूध पीने के बाद अलग-अलग तरह की पेट संबंधी समस्याएं होने लगती हैं.
लेक्टोस इंटॉलरेंस के लक्षण क्या हैं?
लेक्टोस इंटॉलरेंस के लक्षण दूध पीने के बाद होने वाली समस्याएं ही हैं. यदि किसी व्यक्ति को दूध पीने या दूध बने अन्य फूड्स जैसे पनीर, लस्सी इत्यादि का सेवन करने के बाद पेट में दर्द, गैस बनना, ब्लोटिंग होना, लूज मोशन लगना, अपच होना जैसी समस्याएं होती हैं. तो ये लेक्टोस इंटॉलरेंस का लक्षण ही होती हैं. हालांकि ऐसा कई और कारणों से भी हो सकता है इसलिए किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले जरूरी है कि आप डॉक्टर को जरूर दिखाएं.
क्या बच्चों में भी होती है लेक्टोस इंटॉलरेंस की समस्या?
बहुत छोटे बच्चे या कहिए कि न्यू बॉर्न बेबीज में इस तरह की समस्या नहीं होती है. इसका कारण है कि मां का दूध उस बच्चे की आवश्यकता के अनुरूप होता है. वैसे भी किसी भी बच्चे को दूध की आवश्यकता सिर्फ 6 माह की उम्र तक होती है. इसके बाद बच्चा ठोस आहार लेने लगता है और मां का दूध उसके लिए पर्याप्त भी नहीं रहता है.
क्या दूध पीना जरूरी है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मां का दूध बच्चे के लिए सिर्फ 6 से 7 महीने की उम्र तक के लिए होता है और किसी भी पशु का दूध सिर्फ उसके बच्चे के लिए होता है. ये और बात है कि दूध हमारे कल्चर का हिस्सा है और हमारी पीढ़ियां सदियों से इसका सेवन करती आ रही हैं. क्योंकि हम प्रोटीन के लिए दूध पर निर्भर हैं. हालांकि प्रोटीन की कमी अन्य शाकाहारी फूड्स के माध्यम से भी पूरी की जा सकती है. बाकि नॉनवेज से तो प्रोटीन मिलता ही है.
कौन सा दूध सबसे अच्छा होता है?
दूध की क्वालिटी और इसके सेवन की जब बात आती है तो इसका उत्तर कई अलग-अलग फैक्टर्स से होकर मिलता है. जैसे, आप क्या काम करते हैं, आप कहां रहते हैं, जिस जानवर का दूध आप पी रहे हैं उसे क्या खिलाया जाता है, दिन में कितनी बार आप दूध या इससे बनी चीजों का सेवन करते हैं, इत्यादि कई सवाल हैं.
अपने देश की जलवायु और सेहत से जुड़े अन्य फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए बात करें तो देसी गाय का दूध सबसे अच्छा होता है. लेकिन तभी जब उस गाय को मिलने वाला चारा केमिकल रहित हो. दूध उन्हीं लोगों को आसानी से डायजेस्ट होता है, जो शारीरिक श्रम अधिक करते हैं. हमारे पूर्वज और पुरानी पीढ़ियां शारीरिक श्रम बहुत अधिक किया करती थीं. इसलिए उन्हें दूध आसानी से पच जाता था और किसी प्रकार की समस्या नहीं होती थी. जबकि आजकल लोग सीटिंग जॉब में अधिक रहते हैं इसलिए इन्हें समस्याएं भी अधिक होती हैं.
क्या लेक्टोस इंटॉलरेंस वर्तमान समय की दी हुई समस्या है?
नहीं ऐसा नहीं है. मेडिकल साइंस में इस दिक्कत को पढ़ाया जाता है और यह शुरुआत से ही है, शायद जबसे इंसान ने पशु के दूध का उपयोग शुरू किया होगा. लेकिन पिछले कुछ साल में यह समस्या तेजी से बढ़ी है. अपने 32 साल के करियर और अनुभव के आधार पर कहूं तो पहले 100 में 5 लोगों को इस तरह की दिक्कत आती थी लेकिन अब 100 में से 15 या 20 लोगों को लेक्टोस इंटॉलरेंस की समस्या होती है. हालांकि हमारे देश में फिर भी यह समस्या उतनी अधिक नहीं है जितनी कि अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों में है. इसका कारण पशु के भोजन और उसे दिए जाने वाले इंजेक्शन्स या दूसरी दवाओं से काफी हद तक जुड़ा है.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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