स्टेज 4 कैंसर सबसे खतरनाक रूप होता है. इसमें मृत्यु दर का सबसे अधिक जोखिम होता है. हालांकि, स्टेज 4 कैंसर होने के बाद व्यक्ति की जीवित रहने की दर काफी कम होते हैं. जिसमें कैंसर का प्रकार भी शामिल है. आर्टिकल के मुताबिक स्टेज 4 कैंसर क्या है ? स्टेज 4 कैंसर अपने मूल स्थान से शरीर के दूर के हिस्सों में फैल चुका होता है. इसे कभी-कभी मेटास्टेटिक कैंसर कहा जाता है. कैंसर के शुरुआती लक्षण को देखते हुए अगर वक्त रहते इसका पता चल जाए. तो इस बीमारी से जान बचाई जा सकती है.
जब कैंसर शरीर के किसी दूसरे हिस्से में फैलने लगता है तो उसे मेटास्टेसाइज कहते हैं, तब भी इसे उसके मूल स्थान से ही पहचाना जाता है. उदाहरण के लिए यदि स्तन कैंसर मस्तिष्क में मेटास्टेसाइज होता है, तो इसे अभी भी स्तन कैंसर माना जाता है. मस्तिष्क कैंसर नहीं. कई स्टेज 4 कैंसर की उपश्रेणियां होती हैं. जैसे कि स्टेज 4A या स्टेज 4B, जो अक्सर इस बात से निर्धारित होती हैं कि कैंसर पूरे शरीर में किस हद तक फैल चुका है. इसी तरह, स्टेज 4 कैंसर जो एडेनोकार्सिनोमा होते हैं. उन्हें अक्सर मेटास्टेटिक एडेनोकार्सिनोमा कहा जाता है.
कैंसर के खतरनाक केस पर स्टडी
दरअसल, कैंसर का चौथे स्टेज में इलाज संभव है, ये बात डॉक्टर गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल में आए एक केस को देखकर कह रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये मरीज एक नहीं कई अस्पतालों में इलाज करवा चुका था लेकिन उसकी सेहत में किसी तरह का सुधार नहीं हुआ. प्राथमिक जांच में पाया गया था कि वह टॉक्सिमिया की स्थिति में था और कैंसर का विकास उसमें तेजी से हो रहा था. इसकी वजह से मरीज की सेहत दिन बीतने के साथ गिरती जा रही थी. जब अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट और डॉक्टरों की टीम ने इसकी जांच की तो उसे ICU में एडमिट कराया. मरीज की इम्यूनिटी काफी कम होने के चलते उसमें फंगल इंफेक्शन और कई तरह की बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया था. उसकी प्लेटलेट्स भी लगातार कम हो रही थी और इंट्राक्रैनील हेमरेज का खतरा भी उसे था.
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क्या चौथे स्टेज में कैंसर का इलाज संभव है
सीनियर मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट के अनुसार, अगर सही तरह से इलाज, दवाईयां और थेरेपी का इस्तेमाल हो तो चौथी स्टेज में भी कैंसर का इलाज हो सकता है. डॉक्टरों की टीम ने इस मरीज का इलाज करते समय सबसे पहले फीवर न्यूट्रोपेनिया का ट्रीटमेंट स्टार्ट किया. चूंकि उसकी हालत लगातार खराब हो रही थी, छाती, पेट और यूरीन में भी इंफेक्शन था. यह डॉक्टरों के लिए ज्यादा चिंता वाली बात थी. उसके शरीर में एंटीबायोटिक रोधी बैक्टीरिया पहले से ही मौजूद होने के चलते एंटीबायोटिक भी काम नहीं कर रहा था. ऐसे में हाईटेक और साक्ष्य आधारित दवाईयों से उसका इलाज किया गया और करीब एक महीने तक उसकी देखभाल की गई.
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क्या एडवांस तरीके से इलाज का फायदा मिला
गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि जब मरीज की जांच की गई तो उसमें कैंडिडा पाया गया था. यह एक तरह का फंगल इंफेक्शन है. इससे बचने के लिए मरीज को एम्फोटेरिसिन दी गई. उसकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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