नयी दिल्ली: भारत में साल 2005 से पांच वर्ष से कम आयु के दस लाख बच्‍चों को निमोनिया, डायरिया, नवजात शिशु संक्रमण, जन्‍म के समय दम घुटने/ट्रोमा, खसरे और टिटनेस से होने वाली मृत्‍यु से बचाया गया है. लैन्सेट पत्रिका के ताजा अंक में प्रकाशित अध्‍ययन में यह खुलासा किया गया है.


किसने करवाई रिसर्च-
पत्रिका ने ‘इंडियाज मिलियन डेथ स्‍टडी’ नाम से पहला ऐसा अध्‍ययन किया है जिसमें भारत में कुछ विशेष कारणों से बच्चों की मौत के मामलों में बदलाव का प्रत्यक्ष अध्‍ययन किया गया है.


निमोनिया और डायरिया से 60% मौतें होने से बची-
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक रिलीज के मुताबिक, अध्‍ययन में कहा गया है कि राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के अंतर्गत बच्चों की मृत्‍यु में गिरावट दिखी. निमोनिया और डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 60 प्रतिशत से अधिक (कारगर इलाज के कारण) की गिरावट आई.


सांस लेने में कठिनाई और ट्रोमा से 66% मौतें होने से बची-
जन्‍म के समय नवजात बच्चों को सांस लेने में कठिनाई और प्रसव के दौरान ट्रोमा से होने वाली मृत्‍यु के मामलों में 66 प्रतिशत ( अधिकतर जन्‍म अस्‍पतालों में होने के कारण) की कमी आई.


खसरे और टिटनेस से 90% मौतें होने से बची-
खसरे और टिटनेस से होने वाली मृत्‍यु के मामले 90 प्रतिशत (अधिकतर विशेष टीकाकरण अभियान के कारण) तक कम हो गये.


ये हैं आंकड़े-
लैन्सेट के अध्‍ययन में कहा गया है कि नवजात शिशु मृत्‍यु दर (प्रति एक हजार जन्‍म) में गिरावट दर्ज की गयी. साल 2000 में ऐसे 45 मामले दर्ज किये गये थे जो 2015 में 27 प्रति हजार रह गये. इसमें 3.3 प्रतिशत वार्षिक गिरावट दर्ज हुई. इसी तरह एक महीने से 59 महीने तक की उम्र के बच्‍चों की मृत्‍यु दर 2000 की 45.2 से गिरकर 2015 में 19.6 रह गई. यह गिरावट 5.4 प्रतिशत वार्षिक रही.


ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब राज्‍यों के बच्चों की मौत में आयी गिरावट-
अध्ययन के मुताबिक, एक महीने से 59 महीने तक की उम्र के बच्‍चों के बीच निमोनिया से होने वाली मृत्‍यु में 63 प्रतिशत की कमी आई. डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 66 प्रतिशत और खसरे से होने वाली मृत्‍यु के मामले 90 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गये. एक से 59 माह के बच्‍चों में निमोनिया और डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 2010 से 2015 के बीच भी महत्‍वपूर्ण कमी आई. यह औसत गिरावट राष्ट्रीय स्तर पर सालाना 8-10 प्रतिशत रही. गिरावट विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब राज्‍यों में दिखी.


कैसे की गई रिसर्च-
अध्ययन में बताया गया कि ‘इंडियाज मिलियन डेथ स्‍टडी’ में प्रत्‍यक्ष रूप से 13 लाख घरों में मृत्‍यु के कारणों पर सीधी नजर रखी गयी. 2001 से 900 कर्मियों ने इन सभी घरों में रहने वाले लगभग एक लाख लोगों के साक्षात्कार लिए जिनमें बच्‍चों की मृत्‍यु हुई थी. इनमें मृत्यु के करीब 53 हजार मामले जन्म के पहले महीने में सामने आये और जन्म के पहले से 59 महीनों में शिशुओं की मृत्यु के 42 हजार मामले दर्ज किये गये.


नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.