ज्यादा खर्राटे लेने वाले लोगों में इस गंभीर बीमारी का है खतरा, नहीं निकाला हल तो बढ़ती चली जाएगी दिक्कत
जिन लोगों ने कहा कि वे पांच घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में स्ट्रोक होने की संभावना 3 गुना ज्यादा थी.
सोते वक्त कई लोगों को खर्राटे लेने की आदत होती है. वैसे तो उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐसे प्रभाव दिखना आम बात है. लेकिन एक अध्ययन बताता है कि शांत सोने वालों की तुलना में खर्राटे लेने वाले लोगों में स्ट्रोक होने की संभावना लगभग दो गुना ज्यादा रहती है. आयरिश रिसर्चर्स ने पाया है कि खर्राटे लेने वालों में स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है. इस अध्ययन में लगभग 4500 बुजुर्ग लोगों को शामिल किया गया था. अध्ययन में इस बात पर गौर किया गया कि क्या नींद की समस्या स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना से जुड़ी है या नहीं.
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक, गॉलवे यूनिवर्सिटी के डॉ. क्रिस्टीन मैककार्थी ने कहा कि हमारे नतीजे बताते हैं कि नींद की समस्याएं किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकती हैं. स्टडी के मुताबिक, अगर आपको नींद से जुड़ी पांच से ज्यादा समस्याएं हैं तो स्ट्रोक का खतरा उन लोगों की तुलना में 5 गुना ज्यादा हो सकता है, जिन्हें नींद से जुड़ी कोई समस्या नहीं है. ब्रिटेन में हर साल लगभग एक लाख लोगों को स्ट्रोक होता है.
डिमेंशिया सहित कई बीमारियों का रिस्क
ये जानलेवा स्थिति आमतौर पर ब्रेन को ब्लड की सप्लाई करने वाले ब्लड वैसल्स में रुकावट की वजह से पैदा होती है. पांच में से लगभग दो ब्रिटिश लोगों में खर्राटे की समस्या देखी जाती है. जबकि पांच में से एक व्यक्ति रात में 7 से 9 घंटे की नींद नहीं लेता है, जिसकी डॉक्टर्स अक्सर सलाह देते हैं. पिछली रिसर्च से मालूम चला है कि बहुत कम सोने से आप में स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है. साथ ही साथ दिल की बीमारी और डिमेंशिया सहित कई बीमारियां भी हो सकती हैं.
नींद की कमी से बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा!
न्यूरोलॉजी में पब्लिश नई स्टडी में पाया गया है कि नींद से जुड़ी समस्याओं ने स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाने का काम किया है. स्ट्रोक से पीड़ित 2243 लोगों की तुलना 2253 लोगों से की गई, जो इस स्थिति से पीड़ित नहीं थे. उनसे उनके नींद से जुड़े पैटर्न के बारे में पूछताछ की गई. उनसे पूछा गया कि वे रात में कितने घंटे सोते हैं, नींद कैसी आती है, खर्राटे आते हैं या नहीं और तो और नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत होती है या नहीं.
नींद के पैटर्न में करें सुधार
जिन लोगों ने कहा कि वे पांच घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में स्ट्रोक होने की संभावना 3 गुना ज्यादा थी. स्लीप एपनिया वाले लोगों (सोते समय सांस लेने में दिक्कत) में भी स्ट्रोक होने की संभावना तीन गुना ज्यादा होती है. डॉ मैककार्थी कहते हैं कि नींद के पैटर्न में सुधार करने से स्ट्रोक का खतरा भी कम हो सकता है.
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