रिसर्च में दावा- कोरोना मरीजों में अवसाद और चिंता मस्तिष्क को कर सकते हैं प्रभावित
जिन कोरोना मरीजों पर इस अध्ययन को किया गया उनमें से 47.4 प्रतिशत प्रतिभागियों ने प्रति सप्ताह कम से कम कई दिनों तक अवसाद में रहने की बात कही. 21.1 प्रतिशत ने लगभग हर दिन उदास रहने के बारे में बताया.
वॉशिंगटन: कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर में लगातार रिसर्च हो रही है. यह वायरस इतना नया है कि इस पर जिनता शोध हो रहा है, उतनी ही ज्यादा चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं. एक नए अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस के मरीजों में अवसाद या चिंता के लक्षण दिखना संभवतः एक संकेत हो सकता है कि वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
द लेरिंजोस्कोप जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला कि ये दोनों मनोवैज्ञानिक लक्षण (अवसाद या चिंता) सूंघने की शक्ति और खाने के स्वाद नहीं आने के बेहद करीब हैं. यह कोरोना वायरस के सामान्य लक्षणों जैसे सांस की दिक्कत, खांसी या बुखार जैसे लक्षण वाले मरीजों में नहीं देखे गए.
अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर अहमद सेदाघत ने बताया, "कोरोना के सबसे कम हानिकारक लक्षण सबसे बड़ी मनोवैज्ञानिक बीमारी का कारण हो सकते हैं. इससे हमें बीमारी के बारे कुछ नया जानने को मिल सकता है.'' इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले 6 हफ्तों में कोरोना संक्रमित हुए 114 मरीजों से टेलिफोनिक प्रश्नावली के जरिए सवाल पूछे. इन सभी 114 मरीजों का स्विटजरलैंड के आरौ में इलाज हुआ था.
शोधकर्ताओं ने सूंघने और स्वाद की शक्ति जाना, नाक बंद होना, बलगम आना, बुखार, खांसी और सांस की तकलीफ जैसे लक्षणों का अध्ययन किया. जिन कोरोना मरीजों पर इस अध्ययन को किया गया उनमें से 47.4 प्रतिशत प्रतिभागियों ने प्रति सप्ताह कम से कम कई दिनों तक अवसाद में रहने की बात कही. 21.1 प्रतिशत ने लगभग हर दिन उदास रहने के बारे में बताया.
शोधकर्ता ने बताया कि हमें लगता है कि हमारे निष्कर्ष इस संभावना का संकेत देते हैं कि उदास मनोदशा या चिंता के रूप में कोरोना वायरस केंद्रीय नर्वस सिस्टम में जा सकता है. शोध कर्ता के मुताबिक नाक से सूंघने मार्ग द्वारा कोरोना वायरस नर्वस सिस्टम में जा सकता है और मस्तिस्क को प्रभावित कर सकता है.
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