हाल में एक ऐसा ही मामला सामने भी आया. गाजियाबाद स्थित इंदिरापुरम की रहने वाली 12 वर्षीय आर्ची अचानक घर से गायब हो गई. पेरेंट्स इसके लिए बहुत परेशान हुए. पुलिस में शिकायत तक दर्ज करवाई गई.
क्या था मामला-
आर्ची यादव के गायब होने एक दिन बाद वो कांगड़ा पुलिस को वह रोडवेज बस स्टैंड पर मिली थी. वहां से कांगड़ा पुलिस ने उसे चाइल्ड केयर सेंटर भेज दिया था. जब खोजबीन की तो आर्ची ने उल्टे–सीधे बयां दिए. कभी वे रही थी कि उसे हिप्नोटाइज किया गया. कभी वे बोल रही थी किदो लड़कों ने उनका किडनैव किया. कभी वे बोल रही थी कि वो अनाथ है और हरिद्वार में पढ़ती हैं. वहां उसे बहुत मारा-पीटा जाता था, इसलिए वो भाग आई.
आखिरकार काउंसलिंग के बाद आर्ची ने बताया कि जिस स्कूल में वह पढ़ती है फ़िज़िक्स और केमेस्ट्री के असाइनमेंट नहीं पूरे कर पाई थी, इसलिए उसने ये कदम उठाया. आर्ची, टीचर और स्टडी के दबाव में घर से भाग गई थी.
इस मामले को देखकर सवाल उठता है कि क्या बच्चे पढ़ाई को लेकर किसी प्रेशर में है? क्या बच्चों को टीचर्स का बहुत खौफ होता है? इस बाबत एबीपी न्यूज ने मैक्स हॉस्पिटल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट और साइकैट्रिक्स डॉ. अमिताभ शाह से बात की.
स्लो लर्नस के लिए अलग क्लास-
डॉ. अमिताभ का कहना है कि हर बच्चा पढ़ाई का प्रेशर अलग-अलग अपने हिसाब से लेता है. स्टडी के लिए जो भी करिकुलम बनता है उसे बच्चे आसानी से एडॉप्ट कर लेते हैं. लेकिन बच्चों का एक छोटा रेशों ऐसा है जो कि इसे हैंडल नहीं कर पाते. ऐसे बच्चों के लिए अलग सेक्शन होते हैं. बहुत से स्कूलों में स्लो लर्नर्स के लिए अलग सेक्शन बनाया जाता है. हालांकि अधिकत्तर स्कूलों में ये सुविधा मौजूद नहीं है.
स्कूल की जिम्मेदारी-
डॉक्टर का कहना है कि ये स्कूल और टीचर्स की जिम्मेदारी होती है कि वे ये जानें कि वे कौन से बच्चे हैं जिन्हें ज्यादा अटेंशन की जरूरत होती है. किन बच्चों पर ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी जिससे उनको वो सब्जेक्ट इंटरेस्टिंग लगे.
फैमिली क्या करें-
इस मामले में फैमिली की जिम्मेदारी बनती है कि वो ये आइडेंटिफाई करें कि बच्चा चीजों को सही से एडॉप्ट कर पा रहा है या नहीं. अगर नहीं कर पा रहा तो पहले उसके कारण जानें. उसके बाद सोचें कि उन्हें आखिर करना क्या है?
क्या टिप्स अपनाएं-
- सबसे पहले तो टीचर्स से जाकर मिलें और उन्हें बताएं कि उनके बच्चों को क्या दिक्कत है. वो पढ़ाई में कहां वीक है.
- ये भी जानें कि ऐसी स्थिति में स्कूल की तरफ से क्या किया जा सकता है.
- अगर बच्चा फिर भी चीजों को सही से पिकअप नहीं कर पाता तो साइकैट्रिक्स और साइक्लोजिस्ट से मिलें.
- इसके अलावा बच्चों का आईक्यू लेवल टेस्ट करवाएं और बच्चे की वीकनेस को सही तरह से जानें.
- कई बार बच्चे कुछ सब्जेक्ट्स में बहुत अच्छे होते हैं जबकि कुछ सब्जेक्ट्स में उन्हें कुछ समय नहीं आता. इसे लर्निंग डिस्ऑर्डर कहा जाता है. ऐसे स्थिति में इन बच्चों को कस्टमाइज स्कूलिंग की जरूरत होती है. इन बच्चों को स्पेशल क्लासेज दी जाती है. इनकी स्पेशल कोचिंग होती है. इसमें टीचर और पेरेंट्स की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है.
- इन सबके लिए सबसे जरूरी टीचर और पेरेंट्स को ये समझना होगा कि बच्चे को असल में दिक्कत है भी या नहीं. ऐसे बच्चों को अलग से अटेंशन की जरूरत पड़ती है.
बच्चे की मेंटल हेल्थ-
- अगर बच्चे पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो संभव है कि बच्चा स्कू्ल मिस करें या घर से भाग जाए.
- ये भी पॉसिबल है कि बच्चा स्कूल में और घर में दोनों जगह डांट खाएंगा तो उसका बिहेवियर बदल जाएगा.
- इससे बच्चे की पर्सनेलिटी और डवलपमेंट में इफेक्ट पड़ेगा.
- ऐसे में या तो बच्चा जिद्दी हो जाएगा या फिर किसी की बात नहीं सुनेगा. बच्चा डिप्रेशन में भी जा सकता है.
- बच्चा एकदम गुमसुम भी हो सकती है.
- उसकी एक्टिविटी एकदम बदली-बदली नजर आएगी.