नई दिल्ली: दिल्ली सहित देशभर में स्वाइन फ्लू का कहर है. स्वाइन फ्लू के चलते लगातार लोगों की मौतें हो रही हैं. ऐसे में लोगों को स्वाइन फ्लू के प्रति जागरूक होने की बहुत जरूरत है. फिर भी कई लोग इस बात से अवेयर तक नहीं हैं कि अगर इसका इलाज ठीक तरीके से नहीं हुआ या इसे सीज़नल फ्लू समझ के नज़रअंदाज़ कर दिया गया तो यह बहुत घातक हो सकता है. चलिए जानते हैं स्वाइन के बारे में कुछ अहम बातें.

स्वाइन फ़्लू तीन तरह के होते हैं, माइल्ड, मॉडरेट और गंभीर.

माइल्ड स्वाइन फ़्लू के लक्षण-




  • माइल्ड स्वाइन फ़्लू के मरीजों में कुछ हल्के लक्षणों को देखा जा सकता है. जैसे कि बुखार, खांसी, सर्दी, शरीर में दर्द होना और थकान महसूस होना.

  • माइल्ड स्वाइन फ़्लू के मरीजों में अस्थमा, डायबिटीज, लंग्स डिजीज़ और बुढ़ापे जैसे स्थिति नहीं होती.

  • माइल्ड स्वाइन फ़्लू का उपचार आमतौर पर लक्षणों पर आधारित होता है और इसलिए, दवाइयां उसी अनुसार दी जाती हैं. जैसे- अगर आपको बुखार है, तो आपको पैरासिटामोल दी जाएगी और अगर आपके शरीर में दर्द हो तो आपको पेनकिलर्स दी जाएगी.

  • माइल्ड स्वाइन फ़्लू के मरीज खुद से दवाएं लेना एवॉइड करें.

  • स्वाइन फ्लू के लक्षण लगे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.

  • यह स्थिति सीज़नल फ्लू के समान है और मरीज़ को 3-4 दिनों में बेहतर महसूस हो सकता है.

  • घर पर उचित देखभाल कीजिए ताकी अस्पताल में भर्ती होने की कोई नौबत न आए.

  • दवा के साथ हेल्दी डायट भी लीजिए.

  • स्वाइन फ्लू से पीड़ित लगभग 50 से 60% मरीज़ इस कैटेगरी में आते हैं.


मॉडरेट स्वाइन फ़्लू के लक्षण-




  • इस श्रेणी से जुड़े मरीजों में स्वाइन फ्लू के गंभीर लक्षण देखें जा सकते हैं. इसके अलावा, इन लोगों में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और लंग्स डिजीज़ जैसे लक्षण पाए गए हैं.

  • इन रोगियों के परिवारों में H1N1 वायरस की हिस्ट्री भी होती है.

  • जैसे-जैसे लक्षण गंभीर होते हैं, मॉडरेट स्वाइन फ़्लू के रोगियों को स्वाइन फ्लू की दवाओं जैसे टैमिफ्लू दी जाती हैं.

  • इस स्वाइन फ्लू वाले मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती करना उनकी स्थिति पर निर्भर करता है.

  • कुछ मामलों में, इस स्थिति को घरेलू देखभाल और दवाओं के साथ ठीक किया जा सकता है. इस कैटेगरी में आने वाले मरीज़ की संख्या लगभग 25-30% है.


गंभीर स्वाइन फ़्लू के लक्षण-




  • यह सभी श्रेणियों में सबसे गंभीर है क्योंकि इस श्रेणी के लोग स्वाइन फ्लू की कॉम्पलीकेशंस से पीड़ित होते हैं.

  • इसमें रेस्पिरेट्री प्रॉबलम्स जैसे कि एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS), एक्यूट लीवर इंजरी, ब्लड में ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेने में दिक्कतें आ सकती हैं.

  • इस मामले में, रोगी को अनिवार्य दवाओं के साथ मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है.

  • इस श्रेणी से संबंधित लगभग सभी रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ सकती है.

  • गंभीर मामलों में, रोगियों को अकेले में रखा जाता है या वेंटिलेटर पर रखा जाता है.

  • स्वाइन फ्लू के सभी प्रकार के मामलों में 5% से कम लोग C स्वाइन फ्लू वाली कैटेगरी में आते हैं और इनमें से 6-7% लोग इससे सफर कर रहे हैं.

  • ज्यादातर मामलों में, यहां तक कि इस श्रेणी से संबंधित मरीज़ों का इलाज किया जा सकता है और यदि समय पर डायग्‍नोज़ हो जाए और सही समय पर इलाज मिल जाए तो ठीक किया जा सकता है.यही कारण है कि आपको इन लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए और जल्द से जल्द इलाज करने के लिए एक डॉ. को दिखा देना चाहिए.


नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.