डायबिटीज की बीमारी खानपान और लाइफस्टाइल से जुड़ी बामारी है. अगर वक्त रहते बीमारी का पता चल जाए तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है. दुनियाभर में डायबिटीज मरीजों की संख्या आए दिन बढ़ रही है. खासकर भारतीय लोगों की बात करें तो उनकी जिंदगी में आए अचानक बदलाव के कारण हाई बीपी और डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 


किसी व्यक्ति को डायबिटीज जैसी बीमारी हो जाए तो आगे जाकर उसे दूसरी बीमारी होने का खतरा भी बढ़ जाता है जैसे- दिल, त्वचा और दूसरी तरह की बीमारी. डायबिटीज मरीजों को हमेशा थकान, कमजोरी और सुस्ती बनी रहती है. इस बीमारी से ब्रेक के फंक्शन भी प्रभावित होते हैं. डायबिटीज के कारण फंगल इंफेक्शन का खतरा भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है. अगर डायबिटीज मरीज को एक बार घाव या जख्म हो जाए तो उसे ठीक होने में काफी ज्यादा वक्त लगता है. 


कमजोर इम्युनिटी


एनसीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक डायबिटीज मरीज की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है जिसके कारण फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. फंगल और बैक्टीरिया से लड़ने की ताकत कम होगी तो शरीर में अपने आप कमजोर होता चला जाता है.  हाइपरग्लेसेमिया, इम्यून सेल्स जैसे न्यूट्रोफिल और मैक्रोफेज के फंक्शन को काफी ज्यादा प्रभावित करती है. 


घाव न भरने के कारण


क्रोनिक हाइपरग्लेसेमिया शरीर में नेचुरल तरीके से घाव भरने के काम में रुकावट डालती है. ऐसे में मरीज को फंगल इंफेक्शन का जोखिम काफी ज्यादा बढ़ जाता है. डायबिटीज मरीजों को अक्सर पैर में अल्सर की शिकायत होती है. यह न्यूरोपैथी और पेरिफेरियल वैस्कुलर डिजीज के कारण होती है. 


व्हाइट ब्लड सेल्स


इम्युनिटी कमजोर होने पर डायबिटीज मरीज के घाव भरने में काफी ज्यादा वक्त लगता है. इसमें व्हाइट ब्लड सेल्स धीरे-धीरे खत्म होने लगता है इसे केमोटेक्सिस कहते हैं. इसे फैगोसाइटोसिस की प्रक्रिया कहते हैं. फैगोसाइटोसिस में व्हाइट ब्लड सेल्स पर अटैक करके उसे खत्म कर देती है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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