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इरफान खान को हुई बीमारी के ट्रीटमेंट के बारे में जानिए ये बातें

आज हम आपको न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के ट्रीटमेंट ऑप्शंस के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिससे आप जान पाएंगे कि आखिर न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर का सही ट्रीटमेंट क्या है.

नई दिल्लीः बॉलीवुड एक्टर इरफान खान न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर की चपेट में हैं. हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि ट्यूमर उन्हें शरीर के किस हिस्से  में है. लेकिन आज हम आपको न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के ट्रीटमेंट ऑप्शंस के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिससे आप जान पाएंगे कि आखिर न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर का सही ट्रीटमेंट क्या है.

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर ट्रीटमेंट- न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर का इलाज करने के लिए डॉक्टर्स की पूरी प्लानिंग करती है. मरीज के इलाज के लिए अलग-अलग फील्ड के एक्‍सपर्ट्स को जोड़ा जाता है जैसे- फीजिशियन असिस्टेंट, ओंकोलॉजी नर्स, काउंसलर, डायटिशिन इत्यादि.

ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले कई ट्रीटमेंट के ऑप्शंस की लिस्ट बनाई जाती है जो कि ट्रीटमेंट कई बातों पर निर्भर करती है जैसे-

  • न्यूरोएंड्रोक्रिनिक ट्यूमर का प्रकार क्या है
  • अगर ये कैंसर है तो किस स्टेज का है
  • ट्यूमर के लक्षण क्या-क्या हैं, यदि लक्षणों का ट्रीटमेंट होगा तो उसके क्‍या साइड इफेक्ट्स होंगे
  • ट्रीटमेंट के क्या-क्या साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं
  • मरीज की प्राथमिकता क्या है और मरीज की ओवरऑल हेल्थ कैसी है

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर ट्रीटमेंट के विकल्प-

सर्जरी-  फीयोक्रोमोसाइटोमा और मेर्केल सेल कैंसर दोनों के लिए सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है. सर्जरी के दौरान ऑन्कोलॉजिस्ट कुछ आसपास के हेल्दी टिशूज के साथ ट्यूमर को हटा देते हैं, जिसे मार्जिन कहा जाता है. फीयोक्रोमोसाइटोमा के लिए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की जा सकती है. लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में 1 बड़े चीरे के बजाय 3 या 4 छोटे चीरों का उपयोग होता है. यदि सर्जरी के जरिए ट्यूमर को हटाना संभव नहीं है तो इसे एक निष्क्रिय ट्यूमर कहा जाता है. इन स्थितियों में दूसरी तरह का ट्रीटमेंट किया जाता है.

रेडिएशन थेरेपी- रेडिएशन थेरेपी में हाई एनर्जी एक्स-रे या अन्य पार्टिकल्स का उपयोग करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है. रेडियेशन थेरेपी आमतौर पर उस समय की जाती है जब न्यूरोएंड्रोक्रिनिक ट्यूमर शरीर में फैल गया है या उस स्थान पर है जहां सर्जरी करना असंभव है. मर्केल सेल कैंसर होने रेडियेशन थेरेपी I और II स्टेज की सर्जरी के बाद दी जाती है. रेडिएशन थेरेपी के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं जैसे- थकान, हल्की किन रिएक्शरन, पेट खराब होना और दस्त  लगना. हालांकि ट्रीटमेंट खत्म होने के बाद सबसे साइड इफेक्ट जल्द ही खत्म हो जाते हैं.

कीमोथेरेपी- कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और विभाजित होने से रोकता है साथ ही दवाओं के उपयोग से कैंसर सेल्स को नष्ट करने में उपयोगी होता है. कीमोथेरेपी सुई या एक कैप्सूल के रूप में दी जाती है. कीमोथेरेपी एक निश्चित सीमा में अलग-अलग चक्रों में दी जाती है. कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स व्यक्ति और उसकी खुराक पर निर्भर करते हैं. आमतौर पर इससे थकान, इंफेक्‍शन का खतरा, मतली और उल्टी, बालों के झड़ने, भूख कम लगना और दस्त शामिल हो सकते हैं. ट्रीटमेंट खत्म होने के बाद ये दुष्प्रभाव आमतौर पर चले जाते हैं.   टारगेटिड थेरेपी- टारगेटिड थेरेपी ट्यूमर के विशिष्ट जीन, प्रोटीन या टिशू पर्यावरण को लक्षित करता है जो इसके विकास और अस्तित्व में योगदान देता है. ये थेरेपी ट्यूमर कोशिकाओं के विकास और प्रसार को रोकता है, जबकि स्वस्थ कोशिकाओं के नुकसान को सीमित करता है. पेंक्रियाटिक ट्यूमर के मरीजों के लिए ये थेरेपी बहुत कारगर है.

मेटास्टेटिक न्यूरोरेन्डोक्रिन ट्यूमर- जब कैंसर ट्यूमर शरीर के एक हिस्से जहां से शुरू हुआ था वहां से दूसरे हिस्से में फैलता है तो उस स्थिति को मेटास्टेटिक कैंसर कहते हैं. ज्यादातर रोगियों के लिए मेटास्टेटिक कैंसर का पता चलने के बाद उन्हें संभालना बेहद मुश्किल होता है ये स्थिति काफी चिंताजनक होती है. ट्यूमर और इसके उपचार के कारण कई साइड इफेक्ट दिखाई देने लगते हैं. ट्यूमर को तेजी से बढ़ने से रोकने, नष्ट करने या उपचार करने के अलावा मरीज की देखभाल भी बेहद जरूरी है. इस समय मरीज को शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक आवश्यकताओं के साथ समर्थन देना बहुत जरूरी हो जाता है.

जब बॉडी में कैंसर डिटेक्ट ना हो- कई बार ऐसी सिचुएशन होती है कि जब ट्यूमर बॉडी में डिटेक्ट नहीं होता और ना ही उसके कोई लक्षण दिखाई देते हैं. इस सिचुएशन एनईडी (no evidence of disease) कहा जाता है. हालांकि ये टेम्परेरी और परमानेंट सिचुएशन होती है. ये सिचुएशन मरीज को परेशान कर सकती है क्‍योंकि ऐसी स्थि‍ति में कैंसर वापिस आ जाता है. यदि न्यूरोरेन्डोक्रिन ट्यूमर ओरिजनल ट्रीटमेंट के बाद वापिस आ जाता है तो इस स्थिति को रिकरंट ट्यूमर कहा जाता है. ये ट्यूमर उसी जगह पर वापिस आ सकता है या उसके आसपास की जगहों पर भी आ सकता है.

यदि ट्रीटमेंट फेल हो जाए तो- न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर से जरूरी नहीं कि 100 फीसदी रिकवरी हो जाए. कई बार कैंसर ट्यूमर पूरी तरह से कंट्रोल नहीं हो पाता. इस सिचुएशन को एडवांस्ड या टर्मिनल कहा जाता है. ऐसे में समय-समय तक चेकअप कराते रहना चाहिए. डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए. साथ ही खान-पान और रहन सहन हेल्दी रखें.

ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.

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