दुनिया में एड्स को पहली बार मात देनेवाला शख्स कैंसर से जिंदगी की जंग हार गया. बुधवार को इंटरनेशनल एड्स सोसायटी ने इसकी जानकारी दी. 'बर्लिन पेशेंट' के नाम से मशहूर टिमोथी रेय ब्राउन ने दस साल पहले एचआईवी से ठीक होकर इतिहास रचा था. अपनी मौत से कुछ महीने पहले ब्राउन में ल्यूकोमिया की पुनरावृत्ति हो गई थी. जिसकी वजह से आखिरकार कैलोफोर्निया में उसकी मौत हो गई.
जिंदगी की जंग हार गया 'बर्लिन पेशेंट'
टिमोथी रेय ब्राउन को 90 की दहाई में एड्स और 2006 में ल्यूकेमिया का पता चला. फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में उसके इलाज के लिए डॉक्टरों ने काफी मशक्कत की. ल्यूकेमिया और एचआईवी से छुटकारे के लिए उसका दो बार बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया. डॉक्टरों को उम्मीद थी कि इलाज से ब्राउन को एचआईवी और कैंसर दोनों से छुटकारा मिल जाएगा.
2008 में दो खतरनाक प्रक्रिया के बाद उसकी बीमारी ठीक हो गई. इसलिए पहचान छिपाने की खातिर उसका नाम 'बर्लिन पेशेंट' रखा गया. दो साल बाद उसने लोगों के सामने अपने अनुभव को सार्वजनिक किया. उसने बताया कि सफल जिंदगी की शुरुआत करने में उसे कैसे मदद मिली. 2012 में उसने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "मैं एड्स को हरानेवाला जीता जागता सबूत हूं. एचआईवी से छुटकारा पाना आश्चर्यजनक था." मगर दस साल बाद उसे एक बार फिर ल्यूकोमिया हो गया.
ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर का एक प्रकार है जो बोन मैरो और ब्लड को प्रभावित करता है. उसकी मौत पर इंटरनेशनल एड्स सोसायटी ने बयान जारी किया है. जिसमें ब्राउन के परिजनों, परिचितों और दोस्तों के प्रति संवेदना जताई गई है. इंटरनेशनल एड्स सोसायटी के अध्यक्ष अदीबा कमरुजमां ने कहा, "हम ब्राउन और उसके डॉक्टर गीरो हट्टर के बहुत ज्यादा आभारी हैं.
एड्स को मात देकर रचा था इतिहास
उन्होंने वैज्ञानिकों के लिए एड्स के इलाज की संभावनाओं का दरवाजा खोला है. अब ये मुमकिन लगता है कि एड्स लाइलाज बीमारी नहीं रही." बताया जाता है कि डॉक्टरों ने डोनर की कोशिकाओं का टिमोथी के बोन मैरो ट्रांस्पलांट में इस्तेमाल किया था. इस दौरान डोनर से उसके अंदर एचआईवी वायरस का ट्रांसमिशन हुआ. लेकिन सफल इलाज के बाद एड्स जैसी जानलेवा बीमारी को उसने हरा दिया.
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