बरेली में डॉक्टरों ने 21 साल की एक महिला के पेट से 2 किलो मानव बाल निकाले हैं. जो पिछले 16 सालों से इसे खा रही थी. कहा जाता है कि महिला को जब भी मौका मिलता था वह चुपके से बाल तोड़कर खा लेती थी. मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ट्राइकोफेगिया या रॅपन्ज़ेल सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है.  यह एक मेंटल डिसऑर्डर है जिसमें मरीज खुद अपने ही बाल खाने लगता है. करगैना निवासी को 20 सितंबर को इस बीमारी का पता चला जब सीटी स्कैन में बालों का जमाव पाया गया.


ट्राइकोफेजिया की बीमारी क्या है?


ट्राइकोफेजिया एक क्रोनिक मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम है जिसमें बार-बार बाल खाने का मन करता है . यह अक्सर ट्राइकोटिलोमेनिया से जुड़ा होता है. एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति अपने ही बाल उखाड़ने के लिए मजबूर हो जाता है. बरेली के जिला अस्पताल के सर्जन डॉ. एमपी सिंह ने पीटीआई को बताया कि इलाज के बाद महिला को हॉस्पिटल से खास सलाह दी गई है. महिला ने माना है कि वह 5 साल से बाल खा रही थीं. 26 सितंबर को ऑपरेशन करके उसके शरीर से बाल निकाले गए.बालों की मात्रा ने उसके पेट की गुहा और यहां तक ​​कि उसकी आंत के कुछ हिस्से को पूरी तरह से जकड़ लिया था.इस स्थिति के कारण मरीज ठोस चीजें खाने में असमर्थ हो गई और जब वह कुछ तरल पदार्थ लेती तो उसे उल्टी हो जाती.


रॅपन्ज़ेल सिंड्रोम क्या है?


रोगी की मेंटल हेल्थ ठीक नहीं है उन्हें ट्राइकोफेजिया की बीमारी है. ट्राइकोबेजोअर के लिए ऑपरेशन किया गया था. और इस सिंड्रोम को रॅपन्ज़ेल सिंड्रोम कहा जाता है.रॅपन्ज़ेल सिंड्रोम ट्राइकोबेजोअर का एक असामान्य रूप है. जो मानसिक विकारों ट्राइकोटिलोमेनिया (बाल खींचने की आदत) और ट्राइकोफेजिया (बाल चबाने की रुग्ण आदत) के इतिहास वाले मरीजों में पाया जाता है. जिसके परिणामस्वरूप गैस्ट्रिक बेजोअर विकसित होते हैं. 


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ट्राइकोफेजिया के लक्षण


इसके मुख्य लक्षण उल्टी और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हैं. उन्होंने कहा कि ट्राइकोबेजोअर को बालों का एक गोला माना जाता है. जो आंत के रास्ते और पेट में बन सकता है.यह सौम्य हो सकता है, लेकिन यह गंभीर स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी पैदा कर सकता है और इसके लिए आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता होती है. डॉ. सिंह ने कहा कि इस स्थिति के कारण पेट में दर्द, मतली, उल्टी, दस्त, कब्ज और वजन कम होना जैसे लक्षण होते हैं. उन्होंने कहा कि ट्राइकोफेजिया के कारण का पता अभी तक नहीं चला है. लेकिन कुछ सिद्धांतों का सुझाव है कि यह आनुवंशिक प्रवृत्ति, सामाजिक वातावरण या न्यूरोबायोलॉजिकल कारकों के कारण हो सकता है. उन्होंने कहा कि ट्रिकोटिलोमेनिया के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी को सबसे प्रभावी उपचार माना जाता है.


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यह एक तरह की बेहद दुर्लभ और खतरनाक बीमारी है. डॉक्टर आगे कहती हैं पिछले 20 सालों में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है.परिवार ने डॉक्टरों को बताया कि महिला को बाल खींचने की लत थी और उसकी स्थिति तब सामने आई जब उसके पेट में तेज दर्द होने लगा और उसे सीटी स्कैन की आवश्यकता पड़ी.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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