3 साल के बच्चे की किडनी से निकली 1.6 सेंटीमीटर की दो पथरियां, डॉक्टर्स ने कहा- आसान नहीं था
एक तीन साल के बच्चे में इस स्टोन का पाया जाना कोई सामान्य बात नहीं है. क्योंकि उनके यूरेथ्रा का कैलिबर काफी संकरा होता है.
हैदराबाद से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने 3 साल के बच्चे के यूरिनरी ब्लैडर (मूत्राशय) से 1.6 सेंटीमीटर की पथरी निकाली. बच्चे में स्टोन यानी पथरी का पता तब चला जब बच्चे को पेशाब करने में भारी कठिनाई का अनुभव हुआ. बच्चा बार-बार असहनीय दर्द के कारण रोया करता था. इतना ही नहीं, उसे पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से लगातार बुखार था. हालांकि शुरुआत में एक चिल्ड्रन स्पेशलिस्ट ने बच्चे का केवल दवा के साथ इलाज किया. इस इलाज के बाद कुछ पल के लिए बच्चे को राहत मिली, लेकिन ये राहत ज्यादा समय तक नहीं रही. कुछ दिनों बाद बच्चे को फिर से दर्द की शिकायत होने लगी.
उसे एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेफ्रोलॉजी एंड यूरोलॉजी (AINU) के HITEC सिटी ब्रांच में रेफर किया गया. यहां बच्चे में दो स्टोन्स का पता चला. पहला स्टोन यूरिनरी ब्लैडर में था. जबकि दूसरा स्टोन लेफ्ट यूरेटर (एक ट्यूब जो किडनी और मूत्राशय को जोड़ने का काम करती है) में था. दोनों स्टोन्स का साइज़ लगभग 1.6 सेंटीमीटर था. यहां हैरान करने वाली बात यह है कि एक तीन साल के बच्चे के लिए 1.6 सेंटीमीटर के स्टोन्स का दर्द झेलना काफी चुनौतीपूर्ण था. इससे भी बड़ी चुनौती यह थी कि इन दोनों स्टोन्स को बिना किसी परेशानी के कैसे बाहर निकाला जाए.
आसान नहीं था सर्जरी करना
AINU के सीनियर कंसल्टेंट यूरोलॉजिस्ट और फैसिलिटी डायरेक्टर डॉ. दीपक रघुरी ने बताया कि ऐसे स्टोन आमतौर पर वयस्कों के यूरेथ्रा (मूत्रमार्ग) से बाहर निकाले जाते हैं. हालांकि एक तीन साल के बच्चे में इस स्टोन का पाया जाना कोई सामान्य बात नहीं है. क्योंकि उनके यूरेथ्रा का कैलिबर काफी संकरा होता है और अगर हम कोशिश भी करते हैं तो यूरेथ्रा को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है. लिहाजा इसकी वजह से जिंदगीभर के लिए मूत्रमार्ग सख्त हो सकता है. इसके अलावा, एक और विकल्प नाभि के ठीक नीचे ब्लैडर में एक होल बनाना है और फिर पथरी को निकालना है, जो एक सबसे ज्यादा खतरनाक टेक्निक है.
ऐसे निकाली गई दोनों पथरी
पथरी को पूरी तरह से पहले धूल के कणों में बदला गया. इसके बाद सक्शन मशीन से इसे सोक किया गया. बिना किसी मुश्किल के 45 मिनट से भी कम वक्त में ये चुनौतीपूर्ण सर्जरी पूरी कर ली गई और अगले ही दिन बच्चे को डिस्चार्ज भी कर दिया गया. अब उसे किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं है.
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