ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जो बच्चों के व्यवहार पर गहरा असर डालती है. इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) भी कहा जाता है, और यह बच्चों में व्यवहारिक बदलाव लाता है जिसे समय पर पहचानना जरूरी है. आमतौर पर, बच्चे के जन्म के बाद पहले छह महीने से लेकर एक साल तक यह देखा जाता है कि वह सामान्य तरीके से व्यवहार कर रहा है या नहीं. 


ऑटिज्म के लक्षण स्पष्ट होते हैं, लेकिन कई बार माता-पिता इन्हें सामान्य व्यवहार मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा करने से बच्चे की स्थिति और बिगड़ सकती है और उसका विकास प्रभावित हो सकता है. इसलिए, जल्दी पहचान और सही इलाज बहुत महत्वपूर्ण हैं. 


ऑटिज्म के कुछ सामान्य लक्षण
सामाजिक चुनौतियां



  • बच्चे को दूसरों के साथ खेलने में दिक्कत होती है.

  • वे आंखों में आँखें डालकर बात नहीं कर पाते.

  • दूसरों की भावनाओं को समझने में कठिनाई होती है. 


व्यवहारिक चुनौतियां



  • बच्चे को बदलाव पसंद नहीं होता. वे एक ही रूटीन या तरीके से काम करना पसंद करते हैं.

  • कुछ खास चीजों में उन्हें बहुत ज्यादा दिलचस्पी होती है और वे उसी में लगे रहते हैं.


बात-चीत में दिक्कत



  • कुछ बच्चे बोलने में देरी से शुरू करते हैं या बिल्कुल भी नहीं बोलते.

  • वे अक्सर दूसरों की बातों को दोहराते हैं. 


क्या करें अगर आपको शक है?
अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा इनमें से किसी भी लक्षण को दिखा रहा है, तो इसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द एक बाल रोग विशेषज्ञ या ऑटिज्म विशेषज्ञ से मिलें और उनसे सलाह लें. उचित दिशा-निर्देश और सही इलाज से बच्चे का विकास और बेहतर हो सकता है. 


जानें कैसे हैंडल करें एसे बच्चों को
जब बच्चे को ऑटिज्म हो, तो माता-पिता के लिए यह जानना जरूरी है कि वे उसके साथ कैसे सही तरीके से पेश आएं.  सबसे पहले, बच्चे पर अपनी इच्छाओं का बोझ न डालें. बच्चे को ऑटिज्म होने पर, उसे प्यार और समर्थन की ज्यादा जरूरत होती है. माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे की खास जरूरतों को समझें और उसके अनुसार उसकी मदद करें. अगर बच्चे में ऑटिज्म के कोई भी दो या तीन लक्षण दिखाई दें, तो यह एक चेतावनी संकेत हो सकता है. 


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