नई दिल्लीः डिस्लेक्सिया दुनियाभर में 10 में से एक बच्चे को होता है. इस बीमारी में बच्चे को सीखने में दिक्कतें  आती है. डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि यदि तरीका सही हो तो डिस्लेक्सिया से ग्रसित बच्चे भी सामान्य रूप से सीख सकते हैं.



भारत में डिस्लेक्सिया -
डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं. हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं हैं, जो स्थिति को और अधिक कठिन बना सकती हैं. यह स्थिति लड़कों और लड़कियों को समान रूप से प्रभावित कर सकती हैं. यदि सेकेंड क्लास तक ऐसे बच्चों की पहचान नहीं हो पाई, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर भी इस समस्या से परेशान रह सकते हैं और उस बिंदु पर इसे ठीक नहीं किया जा सकता.

डिस्लेक्सिया का कारण -
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि डिस्लेक्सिक बच्चों का मेंटल स्ट्रिक्च र और काम के लिहाज से सामान्य मस्तिष्क से भिन्न होता है. ऐसे बच्चों में मानसिक विकास के लिए जिम्मेदार नर्वस सिस्टम बचपन से ही अलग प्रकार का होता है. यह भिन्न वाइरिंग ही डिस्लेक्सिया का कारण बनती है. इसी वजह से सीखने और पढ़ने की सामान्य प्रक्रियाएं भी ऐसे बच्चों में लंबा समय ले लेती हैं.

डिस्लेक्सिया के लक्षण-
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में डिस्लेक्सिया के कुछ आम लक्षण हैं- बोलने में कठिनाई, हाथों और आंख में तालमेल न होना, ध्यान न दे पाना, कमजोर स्मरण शक्ति और समाज में फिट होने में कठिनाई.

पेरेंट्स इन बातों पर दें ध्यान-
ऐसे बच्चों के पेरेंट्स को समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या से भागने की बजाय, वे बच्चे की इस कठिनाई का हल खोजने की कोशिश करें, उसका चेकअप कराएं और उचित इलाज भी करवाने की पहल करें. यदि डॉक्टर बताता है कि बच्चे को डिसलेक्सिया है तो इसे जीवन का अंत न समझें. अपने बच्चे के प्रयासों को समझें, स्वीकार करें और समर्थन करें. धैर्य और समझदारी से इस समस्या का समाधान प्राप्त करने में आसानी हो सकती है.

डिस्लेक्सिक बच्चों को उनकी शिक्षा और समझ संबंधी समस्याएं दूर करने की तकनीक-




  • सकारात्मक दृष्टिकोण रखें : बच्चे के साथ सकारात्मक तरीके से संवाद करें और धैर्य रखें. ऐसे बच्चों को चीजों को समझने में समय लगता है.

  • डिस्लेक्सिक बच्चे अधिक जिज्ञासु होते हैं. इसलिए, उन्हें तार्किक जवाब देना जरूरी है. उनके संदेह दूर करने में उनकी मदद करें.

  • विज्ञान और गणित को टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाने से उन्हें विषयों को समझने में मदद मिल सकती है.

  • ऑडियो-विजुअल सामग्री का अधिक उपयोग करें, क्योंकि वे इस तकनीक के साथ चीजों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. छोटे बच्चों के लिए फ्लैश कार्ड का उपयोग किया जा सकता है.

  • योग से ऐसे बच्चों में एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है. सांस लेने के व्यायाम और वैकल्पिक चिकित्सा दवाइयों से स्थिति को संभालने में मदद मिल सकती है.


नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.