Brain Eating Amoeba: एक व्यक्ति पानी से नाक धोने गया और फिर अमीबा उसके नाक में घुस गया और उसका पूरा दिमाग खा गया. इस तरह वो व्यक्ति मौत की नींद सो गया. ऐसा हम नहीं कर रहे हैं, बल्कि ये कहना है अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारियों का. अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के हेल्थ डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने बताया कि दुर्लभ दिमाग खाने वाले अमीबा की वजह से एक व्यक्ति की मौत हुई है. ये व्यक्ति घर में नल के पानी से अपनी नाक धो रहा था, शायद इस तरह से ही वह इस अमीबा के संपर्क में आया. 


फ्लोरिडा के हेल्थ डिपार्टमेंट ने इस बात की पुष्टि की कि राज्य में रहने वाले एक व्यक्ति की मौत नेगलेरिया फाउलेरी की वजह से हुई है. जिसे आमतौर पर बोलचाल की भाषा में दिमाग खाने वाला अमीबा कहा जाता है. ये एक तरह का इंफेक्शन या कहें संक्रमण होता है. डिपार्टमेंट का कहना है कि इस बात को लेकर संदेह जताया जा रहा है कि वह नल के पानी से नाक धोने की वजह से इस संक्रमण के संपर्क में आया. ये इंफेक्शन तब होता है, जब अमीबा नाक के रास्ते दिमाग तक पहुंचता है और ब्रेन टिशू को नष्ट कर देता है. इसकी वजह से दिमाग में सूजन आ जाती है. 


कहां पाया जाता है ये अमीबा? 


यहां गौर करने वाली बात ये है कि लोग गंदा पानी पीने से इसके शिकार नहीं होते हैं, बल्कि ये साफ पानी में पाया जाता है. ये अमीबा गर्म या ताजे पानी के सोर्स जैसे झीलों, नदियों और गर्म झरनों और मिट्टी में पाया जा सकता है. इस वजह से लोग स्विमिंग पूल या वाटर पार्क में इसका शिकार हो जाते हैं. हेल्थ डिपार्टमेंट के प्रवक्ता जे विलियम्स ने कहा कि कई अमेरिकी सरकारी एजेंसियां इस बात की जांच कर रही हैं कि संक्रमण कैसे हुआ. 


सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (CDC) का कहना है कि ये इंफेक्शन दुर्लभ हैं. 2012 और 2021 के बीच अमेरिका में 31 नेगलेरिया फाउलेरी संक्रमणों की जानकारी मिली. लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अत्यधिक सूखे और गर्मी ने अमीबा के लिए पानी में पनपना आसान बना दिया है. 


शरीर को क्या होती है दिक्कत?


एक बार दिमाग में पहुंचने पर ये इंसान में अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस नामक बीमारी को पैदा करता है. इसकी वजह से सिरदर्द, बुखार, मतली या उल्टी होने लगती है. इसके बाद गर्दन में अकड़न, दिल का दौरा और कोमा होने का खतरा होता है, जिसकी वजह से मौत हो जाती है. सीडीसी का कहना है कि अमेरिका में 1962 से लेकर 2021 तक कुल मिलाकर 154 केस सामने आए हैं, जिसमें सिर्फ चार लोग ही मौत को मात दे पाएं हैं.


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